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________________ १७२ आप्तवाणी-९ हमारी यह पाटीदारियों वाली भाषा, भाषा तो जाती नहीं है न! लेकिन नोंध नहीं रखते। ___यानी बात को समझना ही है। अधिक नुकसान करती हो तो वह, यह नोंध है और वणिक लोगों को तो खास, वे एक किताब तो रखते ही है। ये बहनें भी रखती हैं ऐसी किताब। 'पापा ऐसा कह गए और मम्मी ऐसा कह रही थीं।' हर एक मनुष्य नोंध तो रखता ही है, छोड़ता नहीं है। 'ज्ञान' लेने से पहले जो नोंध की किताब थी, नोंध बही थी, वह अभी तक ऐसी की ऐसी रहने दी है। दूसरा सबकुछ दे दिया! जहाँ नोंध वहाँ मन डंकीला अब कुछ लोगों को लोगों के लिए अभिप्राय नहीं होता लेकिन फिर वह नोंध अधिक रखता है, सिर्फ नोंध रखता है। उस नोंध से क्या होता है? कि वह अपने मन को डंकीला बना देती है। अगर वह डंक मार जाए न, तो फिर अपना मन डंकीला हो जाता है। इसलिए किसी की नोंध मत रखना। यह सब तो चलता ही रहेगा न! उसकी नोंध नहीं रखनी है, कर्म के उदय से वह बेचारा भटकता रहता है। नोंध तो अगले जन्म के लिए संसार खड़ा कर देती है। नोंध मन पर नहीं चढ़ती, न ही नोंध से मन बनता है। नोंध तो डंकीली होती है, डंक रहता है उससे। बहुत नोंध इकट्ठी हो जाए न तो वह डंक मारे बगैर नहीं रहता। वह डंक मारता है, बदला लेता है। प्रश्नकर्ता : नोंध लेने वाला कौन है? और अभिप्राय देने वाला कौन है? दादाश्री : वे दोनों ही अहंकार! प्रश्नकर्ता : बुद्धि नोंध लेती है, ऐसा है क्या? दादाश्री : बुद्धि को कोई लेना-देना नहीं है। लेने-देने का धंधा ही नहीं है न! लेने-देने का धंधा ही अहंकार का है।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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