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________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध १६९ अच्छा है और यदि है तो हम मना नहीं कर रहे हैं। किसी भी प्रकार के लगाव के बारे में हम सवाल नहीं करते। हम तो ये अभिप्राय में या यह जो नोंध लेते हो, उसके लिए मना करते हैं। आपको जो भाता है वह खाओ-पीओ, वह बासुंदी बनाना न! बासुंदी बनाकर खाओ, उसकी हम नोंध नहीं रखते। अपने यहाँ उसमें हर्ज नहीं है। खाना-पीना! अपना विज्ञान और कोई आपत्ति नहीं उठाता। इस नोंध की बहुत ही जोखिमदारी है। पर यदि नोंध की जोखिमदारी समझे तो न! जहाँ नोंध वहाँ पुद्गल सत्ता ही बाकी, नोंध किए बगैर रहते नहीं न! बड़ी से बड़ी अज्ञानता की निशानी कौन सी? तब कहे, ‘नोंध! अपना 'ज्ञान' मिलने के बाद सिर्फ यह नोंध ही नहीं रहनी चाहिए, दूसरा सबकुछ रह सकता है। नोंध और पुद्गल दोनों साथ में ही खड़े है। नोंध रहे तब तक पुद्गल रहेगा ही। तब सत्ता भी पुद्गल की ही रहती है। आत्मा की सत्ता नहीं रहती। इसलिए सिर्फ नोंध के बारे में तो हमें दस-पंद्रह दिन में बोलना ही पड़ता है। सावधान करते रहना पड़ता है। यह नोंध रखने से तो सत्ता भी पुद्गल की ही रहती है, खुद की सत्ता नहीं रहती। बिल्कुल भी सत्ता नहीं रहती। नोंध : अभिप्राय प्रश्नकर्ता : नोंध और अभिप्राय में क्या फर्क है? दादाश्री : है न फर्क! नोंध से संसार खड़ा होता है और अभिप्राय से मन खड़ा होता है। नोंध पूरा संसार खड़ा कर देती है, पूरा ही! जैसा था वैसा ही बना देती है, हरा-भरा कर देती है। प्रश्नकर्ता : लेकिन वह नोंध करेगा तब जाकर अभिप्राय बैठेगा न? दादाश्री : वह ठीक है लेकिन नोंध का मतलब अभिप्राय नहीं है। अभिप्राय तो हम नोंध लेने के बाद में देते हैं। नोंध ली उसके बाद अच्छा-बुरा कैसा भी अभिप्राय दे देते हैं, लेकिन अगर नोंध लेंगे तो!
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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