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________________ १६८ आप्तवाणी-९ कि. "इन 'दादा' के पीछे नहीं घमो तो चलेगा। बिना काम के आप बहुत परेशानी उठाते हो।" वह थोड़ा-बहुत एकाध-दो शब्द ऐसे कहे कि जो आपको पसंद नहीं आएँ, तब फिर आप नोंध ले लेते हो कि 'ऐसा इंसान, नालायक इंसान कहाँ से मिल गया?' ऐसी नोंध ले लेते हो। या फिर 'पसंद आए' ऐसा हो, तब भी नोंध लिए बगैर नहीं रहते। यानी 'पसंद नहीं हो' तब भी नोंध लेते हैं और 'पसंद हो' तब भी नोंध लेते हैं। ज़रा सी भी अरुचि उत्पन्न हुई कि नोंध ले लेते हैं। अरुचि होने पर भी नोंध नहीं ले तो वह मोक्ष देगा। किसी ने हमें अरुचि करवाई तब अगर नोंध नहीं लेंगे तो मोक्ष होगा। वह मोक्ष की सीढ़ी है। वापस उसी सीढ़ी से वह उतर जाता है। जिस सीढ़ी से चढ़ा जा सकता है, उसी सीढ़ी से उतर जाता है इंसान। अभिप्राय देने का अधिकार प्रश्नकर्ता : अब किसी भी प्रकार के खराब भाव के बिना, जैसा है वैसा अभिप्राय बता दें, तो उसमें क्या बुरा है ? दादाश्री : जैसा है वैसा कह दो, वह अधिकार है आपको? आपके पास वह दृष्टि है ही नहीं। यथार्थ दृष्टि के बिना तो नहीं बोल सकते। अभिप्राय शब्द तो पूरा ही खत्म हो गया। अभिप्राय तो, “पुद्गल, आत्मा और छः तत्व ही हैं और कोई अभिप्राय नहीं"- ऐसा होना चाहिए। वर्ना अभिप्राय तो यदि कोई राग-द्वेष होंगे तभी अभिप्राय बनता है। वर्ना अभिप्राय नहीं बनता। पसंद या नापसंद हो तभी अभिप्राय बनता है। हमें यदि चाय अच्छी नहीं लगी हो तो हम अभिप्राय देते हैं कि यह चाय अच्छी नहीं है। यानी हम चाय की बुराई किए बगैर नहीं रहते। यह तो कहाँ रहा, लेकिन नोंध लेते हैं। इस तरह हम बनाने वाले व्यक्ति की भी बुराई किए बगैर नहीं रहते और चाय की बुराई करते हैं तो उससे चाय के साथ जो शादी हो चुकी है, वह बंद हो जाएगी न? नहीं। यानी कम लफड़ा हो, वह अच्छा है। किसी भी चीज़ का लगाव कम हो तो
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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