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________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध १३९ नहीं करती। आत्मा, यानी जो अभी आपका माना हुआ आत्मा है, वह और मूल आत्मा, वे दोनों अलग आत्मा हैं। आपका माना हुआ आत्मा बुद्धि सहित है। अहंकार, बुद्धि सभी साथ में मिलकर मूल आत्मा के बारे में शंका करते हैं। क्या शंका करते हैं ? कि 'मूल आत्मा नहीं है। ऐसा कुछ लगता नहीं है।' उसे शंका होती है कि ऐसा हो सकता है या क्या?! प्रश्नकर्ता : यानी बुद्धि के उपरांत जो आत्मा है वह उसके साथ ही जुड़ा हुआ है। दादाश्री : यह जिसे आप आत्मा मानते हो, या फिर यह जगत् किसे आत्मा मानता है ? 'मैं चंदूभाई और बुद्धि मेरी, अहंकार सारा मेरा और मैं ही यह आत्मा हूँ और इस आत्मा को मुझे शुद्ध करना है', ऐसा मानते हैं। उसे ऐसी खबर नहीं है कि आत्मा तो शुद्ध है ही और यह रूपक खड़ा हो गया है। यानी यह खुद, अहंकार-बुद्धि है उसमें, वे शंका करते हैं। सिर्फ बुद्धि शंका नहीं करती। बुद्धि अहंकारसहित शंका करती है। यानी वह 'खुद' हुआ। “आत्मानी शंका करे, आत्मा ‘पोते' आप!" वह खुद आत्मा ही है और वह खुद अपने आप पर शंका करता है। यानी 'उसके' अलावा दूसरा कौन शंका कर सकता है? वह शंका क्रोध-मान-माया-लोभ नहीं करते हैं, न ही मन करता है, न ही बुद्धि करती है। आत्मा ही आत्मा पर शंका करता है। यह आश्चर्य है, ऐसा कहते हैं। खुद अपने आप पर शंका करता है क्योंकि यह तो इतना अधिक अज्ञान फैल गया है कि खुद खुद पर शंका करने लगा है कि 'मैं हूँ या नहीं?' ऐसा कहना चाहते हैं। कृपालुदेव का यह बहुत अच्छा वाक्य है, लेकिन यदि समझे तो! प्रश्नकर्ता : शंका पड़ना, वह क्या प्रतिष्ठित आत्मा का काम है? दादाश्री : इसमें मूल आत्मा को शंका होती ही नहीं। और प्रतिष्ठित आत्मा तो शंकाशील ही है न! और वह आपने जैसी प्रतिष्ठा की है, हम
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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