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________________ ११२ आप्तवाणी-९ निकाल नहीं हुआ है तो क्यों बंद हो गया है ? वापस आ।' ऐसा कहना! ऐसा है, नुकसान के प्रश्न के बारे में सोचने में हर्ज नहीं है लेकिन जब तक नुकसान की भरपाई नहीं होती, तभी तक सोचते रहें तो काम का है। नहीं तो लटू की तरह, नुकसान की भरपाई हुए बगैर यों ही बंद हो जाए तब उसका तो अर्थ ही नहीं है न! वर्ना पहले से ही बंद रखना अच्छा। वर्ना, लोग तो सभी पर्याय भूल जाते हैं। आगे लिखता जाता है और पीछे का भूलता जाता है। हम एक सेकन्ड के लिए भी नहीं भूलते, आज से चालीस साल पहले जो हुआ था, वह भी लेकिन लोग तो भूल जाते हैं न! कुदरत जबरन भुलवा देती है तब भूलें, इसके बजाय पहले से ही भूल जाना अच्छा। यह तो, याद भी उदयकर्म करवाते हैं और भुलवाते भी वे ही हैं। तब फिर 'हमें' ज़रा 'उनका' कंधा थपथपाकर कहना चाहिए, "जो 'है' वह है और 'नहीं है' वह नहीं है, यह 'व्यवस्थित' में कोई भी बदलाव नहीं होनेवाला।" । ___ इसलिए यदि नुकसान की चिंता करनी है तो पूरी जिंदगी करना, नहीं तो मत करना। नुकसान की चिंता करनी है तो जब तक फायदा 'एडजस्ट' न हो जाए, तब तक करना लेकिन फिर यदि लटू की तरह आप किसी के अधीन रहे और चिंता अपने आप बंद हो जाए, वह कैसा?! फायदा 'एडजस्ट' हुए बगैर ही यदि अपने आप बंद हो जाए और नुकसान की भरपाई हुए बगैर अपने आप ही बंद हो जाए तो फिर आपको पहले से ही बंद नहीं कर देना चाहिए? यह तो नुकसान खत्म हुए बगैर ही बंद हो जाता है न? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : तो आप उससे कह देना कि, 'क्यों बंद हो गया? तो फिर तू शुरू ही किसलिए हुआ था? और शुरू हुआ तो ठेठ तक, नुकसान पूरा होने तक चलने दो।'
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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