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________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध १११ प्रश्नकर्ता : हाँ, उतना तो समझ में आता है। दादाश्री : वह गलत चीज़ है और ये जो नखरे करती है, वे सब गलत हैं, वह सब समझ में आ गया है न? वह सही चीज़ नहीं है, ऐसा समझ में आ गया है न? हाँ, यह सब समझ ले तो आत्मा की तरफ जाने के प्रयत्न होते ही हैं। फिर भी बुद्धि का बहुत ज़ोर हो तो हिल जाते हैं। ___ कभी व्यापार में बड़ा नुकसान हो जाए, तब भी आप घंटों तक बैठे नहीं रहते हैं न? जब वे पर्याय आएँ तब छह-छह घंटों तक बैठे नहीं रहते न? प्रश्नकर्ता : बैठे रहते हैं न! कोई ठिकाना नहीं। दादाश्री : बाद में बंद हो जाता है न? प्रश्नकर्ता : बाद में तो बंद हो जाता है। दादाश्री : जब बंद हो जाता है, उस घड़ी वह नुकसान वसूल हो जाने के बाद वे पर्याय बंद होते हैं या फिर नुकसान अपनी जगह पर रहने के बावजूद भी बंद हो जाते हैं ? मान लो हमारा पाँच सौ रुपये का नुकसान हो गया, उसके आधार पर यह शुरू हुआ तो बारह घंटे चला या दो दिन चला, लेकिन कभी न कभी यह बंद होता ही है। तब वह पाँच सौ रुपये जमा होने के बाद बंद होता है या वह नुकसान वैसे का वैसा रहे, तब भी यह बंद हो जाता है ? प्रश्नकर्ता : वह नुकसान तो वैसे का वैसा ही रहता है। दादाश्री : तो हमारा उसे बंद करने का अर्थ क्या है ? जब तक नुकसान की भरपाई नहीं हो जाती, हमें तब तक चलने देना था न? प्रश्नकर्ता : लेकिन वह तो अपने आप ही शुरू हो जाता है और अपने आप ही बंद हो जाता है। दादाश्री : जब वह बंद हो जाए तो फिर कहना कि 'अभी तक
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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