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________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध १०३ प्रश्नकर्ता : हाँ, दूसरा कोई होता तो वह हिल जाता। दादाश्री : फिर उस शिष्य का क्या होगा? और यहाँ तो असर भी नहीं हुआ और उसकी वाइफ पर भी असर नहीं हुआ, किसी पर कुछ भी असर नहीं हुआ और समय बीत गया। शंका का समय तो चला जाएगा न, एक दिन? शंका क्या हमेशा के लिए रहती होगी? कवि ने बहुत भारी वाक्य लिखा है न, कि शंका कैसी है? सच्ची शंका नहीं है यह, लेकिन विपरीत बुद्धि की शंका है यह! और हम 'ज्ञानीपुरुष' हैं, तूने हम पर भी शंका की? जहाँ हर प्रकार से नि:शंक होना है, जिस पुरुष ने हमें नि:शंक बनाया, उन पर भी शंका?! लेकिन यह तो जगत् है, क्या नहीं कह सकता?! और फिर उस शंका को मैं सुनता हूँ, वह भी गैबी जादू से और फिर बाद में वीतरागता से देखता हूँ! फिर भी दंडित नहीं किया 'मैं' 'तू' से फिर कवि क्या कहते हैं? छतां अमने नथी दंड्या, न करिया भेद हुँ तू थी। हाँ, बिल्कुल भी दंड नहीं दिया और 'मैं-तू' नहीं किया कि 'तू ऐसा है, तू ऐसा क्यों करता है, मुझ पर ऐसी शंका क्यों करता है!' ऐसा कुछ भी नहीं। मैं समझता हूँ कि ऐसा ही होता है यह तो, उसे गलतफहमी हुई है। __ अपने यहाँ सत्संग में 'मैं-तू' नहीं हुआ है, 'मैं-तू' का भेद नहीं पड़ा है। 'मैं-तू' का भेद तो कितने ही सालों से नहीं पड़ा है, यहाँ किसी भी जगह पर। अधिकतर तो स्वाभाविक रूप से मनुष्य में दोष आते ही हैं। वह दोषों से भरा हुआ हो तो कहाँ जाए बेचारा?! लेकिन उस वजह से हमने ऐसा नहीं कहा कि 'तू ऐसा है'। 'मैं और तू' कहा तो भेद पड़ जाएगा। हो चुका फिर! और यहाँ तो सबकुछ अभेद! आपको लगा न, ऐसा अभेद?! यानी कि 'तूने ऐसा क्यों किया' ऐसा-वैसा कुछ भी नहीं। मुझमें ऐसी जुदाई है ही नहीं। वर्ना यदि शंका करे न, तो भेद पड़ जाता
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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