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ध्यान सिद्धान्त और न
भी बाहर आ सकता है। फिर प्रहरी होने का कोई अर्थ आते-जाते श्वास को देखते-देखते चित्त जागरूक हो जाता है कि भी श्वास उससे बचकर निकल नहीं पाता, प्रत्येक श्वासको वह लेता है। श्वास और चित्त साथ-साथ चलें, सहयात्री रहे। दो साल में चलें और एक नींद लेता रहे, यह नहीं हो सकता। नींद आते छुट जायेगा। श्वास का क्षेत्र सीमित है, चित्त का क्षेत्र असीम चित कर काम यह नहीं कि वह श्वास की सीमा में चले, श्वास के साथ ही श्वास की यात्रा छोटी है, उसका यात्रापथ नथूने से फेफड़े तक बहत संकीर्ण और छोटा है, किन्तु चित्त का मार्ग बहुत लम्बा-चौड़ा है, बहुत दी है। वह एक क्षण में सारी दुनिया का चक्कर लगा सकता है। इतनी विशाल यात्रा करने वाले और इतनी तीव्र गति से चलने वाले चित्त को श्वास जैसे छोटे यात्री के साथ जोड़े रखना कठिन काम है, किन्तु यह किया जा सकता है। ऐसा करने पर ही चित्त जागरूक हो जाता है, फिर वह कभी नहीं सोता; वह श्वास का साथी बन जाता है।
समभाव
श्वास वास्तविक है, इसलिए वह सत्य है-वर्तमान की घटना है। श्वास-प्रेक्षा करने का अर्थ है-सत्य को देखना, वर्तमान में जीने का अभ्यास करना । श्वास एक घटना है। यह वर्तमान की घटना है, अतीत या भविष्य की नहीं। जिस क्षण में हम श्वास लेते हैं, उसी क्षण में हम उसे देख रहे हैं। यह वर्तमान का क्षण है। यह है-वर्तमान में जीने का अभ्यास; वर्तमान में रहने का अभ्यास। जब हम वर्तमान में हैं, उसे देख रहे हैं, उस समय न कोई राग है, न कोई द्वेष है, क्योंकि जब स्मृति या कल्पना नहीं है, तो राग भी नहीं है और द्वेष भी नहीं है। हम स्मृति और कल्पना से मुक्त तथा राग-द्वेष से मुक्त क्षण में जी रहे हैं। यह है शुद्ध चेतना का क्षण-यहां न प्रियता है और न अप्रियता; न कोई अतीत का अनुभव है और न कोई भविष्य की चिंता।
श्वास को देखने का अर्थ है-समभाव में जीना। वर्तमान में जीना। वर्तमान में जीने का अर्थ है-मन को विश्राम देना, भार का मुक्त होना. मानसिक तनाव से छुटकारा पाना-वीतरागता के क्षण में जीना, राग-द्वेष-मुक्त क्षण में जीना। जो व्यक्ति श्वास को देखता है, उसका तनाव अपने आप विसर्जित हो जाता है।
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