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श्वास-प्रेक्षा
कोशिकाओं तक ऑक्सीजन को पहुंचाने का दायित्व हृदय का होता है. जो पम्पिंग के द्वारा ऑक्सीजन युक्त हेमोग्लोबीन वाले रक्त को शरीर के समस्त भागों तक पहुंचा देता है। आंतरिक श्वसन-क्रिया शरीर के विभिन्न भागों में कियाशील ऊतकों के भीतर घटित होती है। इस क्रिया के दौरान हेमोग्लोबिन से मुक्त होकर ऑक्सीजन-स्कंध ऊतकों को उपलब्ध किए जाते हैं तथा कार्बन-डाइ-ऑक्साइड-स्कंध रक्त में मिलाकर वापस फुफ्फुस की ओर भेज दिए जाते हैं।
___ जहां शरीर की अधिकांश महत्त्वपूर्ण प्रणालियों का नियमन स्वतः (अनैच्छिक) नियंत्रण से किया जाता है, वहां श्वसन-क्रिया का नियमन ऐच्छिक और अनैच्छिक दोनों प्रकारों से होता है। सामान्य रूप से चलने वाली लयबद्ध श्वसन-प्रक्रिया को श्वसन-मांसपेशियों एवं फुफ्फुस-तंत्रिकाओं के माध्यम से श्वास-केन्द्र को फीडबैक-पद्धति द्वारा सूचना भेजकर चालू रखा जाता है। इसके अतिरिक्त ऐच्छिक क्रिया के द्वारा भी इसे (श्वसन-केन्द्र को) प्रभावित किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, कोई व्यक्ति अपने श्वास को कुछ देर के लिए ऐच्छिक रूप से रोक भी सकता है।
श्वसन-क्रिया में श्वास नाक से आता है और मुंह बंद रखा जाता है। ऐसा करने से हवा में रहे कीटाणु, धूलि-कण तथा अन्य प्रदूषण नासिकाओं के भीतर रही हुई श्लेष्मा-झिल्ली की स्निग्धता के कारण तथा नाक में स्थित बालों के कारण वहां रोक दिए जाते हैं। __श्वास में दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि श्वास को भीतर लेते समय पेट को भीतर डालने की बजाय बाहर फुलाना चाहिए। सामान्य रूप से लोग श्वास लेते समय पेट को सिकोड़ते हैं, जो ठीक नहीं है। उसी प्रकार श्वास छोड़ते समय पेट को सिकोड़ना चाहिए।
सामान्य रूप से व्यक्ति एक श्वास के दौरान १/२ से १ लीटर हवा लेता है किंतु सही अभ्यास के द्वारा इस मात्रा को चार-पांच लीटर तक बढ़ाया जा सकता है। हममें से अधिकांश व्यक्ति छोटे-छोटे टुकड़ों में छिछला श्वास लेते हैं, जिसकी संख्या १५ से १६ प्रति मिनट होती हैं। प्रशिक्षण के द्वारा हम मंद एवं लम्बा गहरा श्वास लेने का अभ्यास बढ़ा सकते हैं। श्वास की गति को मंद करने से एक मिनट में चार या पांच श्वास तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। मंद श्वास के द्वारा हमें अनेक लाभ होते हैं, जैसे
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