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प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग दिशा और प्राण की धारा बदल जाए-मन और प्राण की सारी ऊर्जा भीत की ओर बहने लग जाए। यदि मन भीतर की ओर थम गया, यदि अस्तिला और (चेतन्य) की कोई झलक मिल गई, तो शरीर के समस्त अवयव अपने आप शांत हो जाएंगे। प्रयत्न करने की कोई आवश्यकता या अपेक्षा न होगी। जब हाथ, पैर और वाणी का संयम-शिथिलीकरण घटित होता है तब इन्द्रियों के तनाव कम हो जाते हैं। उनमें उठने वाली आकांक्षाओं की तरंग कम हो जाती है। तब अध्यात्म की यात्रा शुरू होती है। अध्यात्म की यात्रा शुरू करने के लिए सबसे पहली शर्त है-कायोत्सर्ग।
साधना में कायोत्सर्ग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। कायोत्सर्ग करने का उद्देश्य क्या है ? इसका एक उद्देश्य है कि शक्ति का जो व्यर्थ ही व्यय हो रहा है. उसे रोका जाए। शरीर के द्वारा जो शक्ति खर्च हो रही है, वाणी के द्वारा जो शक्ति खर्च हो रही है, मस्तिष्क की जो शक्ति व्यर्थ ही खर्च हो रही है, उसे बचाया जा सके।
दूसरे शब्दों में कायोत्सर्ग की सारी प्रक्रिया इसीलिए है कि शक्ति को बचाया जा सके और शक्ति का सही अर्थ में उपयोग किया जा सके। इसका एकमात्र उपाय है-कायोत्सर्ग। हम कायोत्सर्ग करें, शिथिलता का अनुभव करें, जिससे कि हमारे शरीर की कोशिकाएं, हमारे शरीर का कण-कण विश्राम ले सके और उसकी शक्ति खर्च न हो, संचित रहे। श्वास को शांत करें। श्वास लम्बा लें। श्वास को मंद करें। जब श्वास मन्द होता है, तब शरीर शिथिल होता है, कायगुप्ति और कायोत्सर्ग सधता है, ऑक्सीजन की खपत कम हो जाती है, प्राणशक्ति का व्यय कम होता है।
___ अध्यात्म ने मनुष्य को बदलने की एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया दी। उस प्रक्रिया के अनेक चरण हैं। उसका पहला चरण है-कायोत्सर्ग। इससे पुरानी आदतों में परिवर्तन आता है-मन का शोधन होता है। कायोत्सर्ग बुरे स्वभावों को बदलने वाला है। जो कायोत्सर्ग की प्रक्रिया को नहीं जानता, वह स्वभाव-परिवर्तन नहीं कर सकता। "सेल्फ-हिप्नोटिज्म' के विशेषज्ञों ने इसके लिए सबसे पहला जो सूत्र दिया है वह है-'ओटो-रिलेक्सेशन'-'स्व-शिथिलीकरण' | यह कायोत्सर्ग की प्रक्रिया है। चाहे स्वभाव को बदलना हो, चाहे किसी बीमारी की चिकित्सा करनी हो, तो सबसे पहले कायोत्सर्ग करना होगा।
मानसिक शांति का सबसे बड़ा उपाय है-चित्त-समाधि। चित्त-समाधि के लिए आवश्यक है-चित्त की शुद्धि। चित्त की शुद्धि का सबसे बड़ा सूत्र
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