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कायोत्सर्ग का कायोत्सर्ग के प्रयोग में सर्वथा अभाव होता है। इस बात से पूर्व उल्लिखित प्राक्कल्पना प्रमाणित होती है कि अधिकांश घटानाओं में हाइपरटेंशन की बीमारी का मूल कारण दबावपूर्ण स्थितियां हैं।
कायोत्सर्ग करने का एक अन्य मुख्य कारण है उसकी रोग-निरोधक शक्ति। अनुकंपी नाड़ी-संस्थान की अत्यधिक सक्रियता के दुष्परिणामों से बचने का यह एक सहज और निरापद मार्ग है। इसका अर्थ यह हुआ कि यह प्रयोग उन भावात्मक बीमारियों को भी शांत करने का बहुत उपयोगी उपाय है, जिनकी उत्पत्ति बढ़ी हुई अनुकंपी नाड़ी-संस्थान की सक्रियता पर आधारित है।
कायोत्सर्ग का एक उपचारात्मक प्रयोग के रूप में दूसरा महत्त्वपूर्ण उपयोग है-धूम्रपान, मद्यपान जैसे मादक पदार्थों के व्यसन से पीड़ित व्यक्ति को व्यसन-मुक्त करना। भांग, चरस, गांजा, अफीम एवं उससे निकाले गए हेरोइन, कोकीन तथा एल.एस.डी. आदि खतरनाक नशीले या स्वापक पदार्थ हैं, जो सेवन करने वाले व्यक्ति के स्वास्थ्य को बुरी तरह से बिगाड़ देते हैं तथा बहुधा उसे अकाल मृत्यु के मुंह में धकेल देते हैं।
प्रेक्षाध्यान-पद्धति के विभिन्न ध्यान-प्रयोगों के साथ कायोत्सर्ग के नियमित अभ्यास द्वारा कोई भी व्यक्ति सर्वथा व्यसन-मुक्त हो सकता है। इतना ही नहीं, वस्तुतः कायोत्सर्ग का प्रभाव व्यक्ति की उन मौलिक प्रवृत्तियों पर पड़ता है, जो उसे नशे के सेवन के लिए बाध्य कर देती है। इस प्रकार कायोत्सर्ग नशीले पदार्थों का एक अरासायनिक विकल्प है, जो सर्वथा निर्दोष या निरापद ही नहीं अपितु स्वास्थ्यवर्धक है। नशीले पदार्थों के सेवन से जो मस्ती आती है, उसकी अपेक्षा ध्यान द्वारा होने वाली आनन्दानुभूति अधिक गहरी और निर्दोष होती है। आध्यात्मिक प्रयोजन
यदि हमें अपनी स्थूल चेतना की बात को भीतर में-सूक्ष्म तक पहुंचाना है तो कायोत्सर्ग करना आवश्यक है। यदि शरीर की प्रवृत्तियों का और स्नायविक प्रवृत्तियों का शिथिलीकरण नहीं है, तो बात भीतर तक नहीं पहुंच सकती। कायोत्सर्ग दोनों ओर से किया जा सकता है-बाहर से भीतर की ओर अथवा भीतर से बाहर की ओर चलने से। बाहर से चलेंगे, तब सबसे पहले हाथों, पैरों, वाणी और इन्द्रियों का संयम करना होगा। जब हम भीतर से चलेंगे, तब उस मुद्रा में बैठना होगा जिससे मन की
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