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प्रक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग (३) विद्युत् मस्तिष्कीय लेखांकन (ई. ई. जी)
स्वय-सचन के प्रयोग कि सफलता का आधार है-शरीर की शिथिल या तनाव-मुक्त और स्थिर अवस्था। जितनी अधिक शिथिलता और स्थिरता उतनी अधिक सफलता।
कायोत्सर्ग के प्रयोग का आधार है-स्वयं-सूचन। इस प्रयोग में शरीर के प्रत्येक अवयव को स्नेहमय स्वतः सुझावों द्वारा क्रमशः शिथिल और तनान-मुक्त बनाया जाता है। कायोत्सर्ग के सहायक तत्व __स्वस्थ जीवन के लिए कायोत्सर्ग के अतिरिक्त शारीरिक प्रवृत्ति और व्यायाम भी नितांत आवश्यक है। इससे मांसपेशियों में रक्त-संचार सुचारु रूप से होने में सहायता मिलती है। हमारी लगभग सभी मांसपेशियों के समूह के अपने-अपने प्रतिद्वन्द्वी होते हैं-एक समूह जब शिथिल होता है, तब दूसरा समूह तन जाता है। यदि एक प्रकार के मांसपेशी-समूह को लम्बे समय तक स्थिर-संकुचित (तनी हुई) अवस्था में रखें, तो रक्त-संचार अवरुद्ध होता है, जिससे थकान के कारण शरीर में पैदा होने वाले रसायन-मुख्यतः दुग्धाम्ल (लेक्टिक एसिड) जमा हो जाता है (जो सामान्य स्थिति में रक्त-संचार के सुचारु रूप से होने पर वहां से हटा दिया जाता है) और इसी जमा होने वाले रसायनों के कारण ही व्यक्ति को पीड़ा, कड़ापन या थकान की अनुभूति होती है। अतः मांसपेशियों में दुग्धाम्ल आदि रसायनों के जमाव को रोकने के लिए उनमें रक्त का सुचारु प्रवाह होना अत्यन्त आवश्यक है।
मांसपेशियों के क्रमिक संकोच-विकोच द्वारा किये गये लयबद्ध आसन आदि व्यायाम से रक्त का संचार सुचारु बनता है तथा पीड़ा, थकान आदि में कमी होती है।
बैठने, खड़े रहने आदि की सही मुद्रा और आसन को मांसपेशियों को तनाव-मुक्त रखने की कंजी कहा जा सकता है। हमारे शरीर को प्रतिक्षण गुरुत्वाकर्षण का प्रतिकार करना पड़ता है। बैठने, खड़े रहने आदि में आदतन गलत मुद्रा या आसन से मांसपेशियों में सतत् खिंचाव पैदा हो सकता है या उनकी संरचना में बिगाड़ हो सकता है।
__ सही ढंग से खड़े रहने की विधि है-गर्दन और रीढ़ की हड्डी दोनों सीधी रेखा में रहनी चाहिए तथा सिर को संतुलित अवस्था में गर्दन पर टिकाए रखना चाहिए। सिर न तो एक ओर झुका रहे और न आगे की ओर
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