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विकास-वृत्त
जैन साधकों की ध्यान पद्धति क्या है- यह प्रश्न दूसरे ने नहीं पूछा, स्वयं हमने ही अपने आपसे पूछा । वि. सं. २०१७ में यह प्रश्न मन में उठा और उत्तर की खोज शुरू हो गयी। उत्तर दो दिशाओं से पाना था- एक आचार्य से दूसरा आगम से आचार्य श्री ने पथ-दर्शन किया कि आगम से इनका विशद उत्तर प्राप्त किया जाए ।
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आगम- साहित्य में ध्यान - विषयक कोई स्वतंत्र आगम उपलब्ध नहीं है। नंदी सूत्र की उत्कालिक आगमों की सूची में 'ध्यान-विभक्ति' नामक आगम का उल्लेख है, किंतु वह आज उपलब्ध नहीं है। इस स्थिति में उपलब्ध आगम-साहित्य में आए हुए ध्यान - विषयक प्रकरणों का अध्ययन शुरू किया और साथ-साथ उनके व्याख्या-ग्रन्थों तथा ध्यान-विषयक उत्तरवर्ती साहित्य का भी अवगाहन किया। इस अध्ययन से जो प्राप्त हुआ, उसके आधार पर ध्यान की एक रूपरेखा उत्तराध्ययन के टिप्पणों में प्रस्तुत की गयी। विक्रम संवत २०१८ में आचार्य श्री ने 'मनोनुशासनम्' की रचना की । मैंने पहले उसका अनुवाद किया और वि० सं० २०२४ में उस पर विशद व्याख्या लिखी । उसमें जैन साधना-पद्धति के कुछ रहस्य उद्घाटित हुए । वि. सं. २०२८ में आचार्यश्री के सान्निध्य में साधु-साध्वियों की विशाल परिषद् में जैन योग के विषय में पांच भाषण हुए। उनमें दृष्टिकोण की और कुछ स्पष्टता हुई । वे 'चेतना के ऊर्ध्वारोहण' पुस्तक में प्रकाशित हैं । भगवान् महावीर की पचीसवीं निर्वाण - शताब्दी के वर्ष में 'महावीर की साधना का रहस्य' पुस्तक प्रकाशित हुई । ये सारे प्रयत्न उसी प्रश्न का उत्तर पाने की दिशा में चल रहे थे ।
यह प्रश्न का बीज विक्रम सं. २०१२ के उज्जैन चातुर्मास में बोया गया था। वहां आचार्यश्री के मन में साधना-विषयक नये उन्मेष लाने की बात आयी । 'कुशल साधना' - इस नाम से कुछ अभ्यास- सूत्र निर्धारित किए गए और साधु-साध्वियों ने उनका अभ्यास शुरू किया। साधना के क्षेत्र में यह एक प्रथम रश्मि थी। उससे बहुत नहीं, फिर भी कुछ आलोक अवश्य मिला। उसके पश्चात् अनेक छोटे-छोटे प्रयत्न चलते रहे। वि. सं. २०२० की सर्दियों में मर्यादा महोत्सव के अवसर पर 'प्रणिधान कक्ष' का प्रयोग
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