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कायोत्सर्ग
(क) हाइपोथेलेमस (अवचेतक)-यह नाडी तन्त्र और ग्रन्थि-तन्त्र का संधि-स्थल है। यह हमारे मस्तिष्क का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भाग है जो सामान्य रूप से चेतन मन के द्वारा जिन क्रियाओं का नियन्त्रण नहीं होता उन सभी क्रियाओं का संयोजन करता है।
(ख) पीयूष ग्रंथि (पिच्यूटरी ग्लैण्ड)-यह अन्तःस्रावी ग्रन्थि-तन्त्र की प्रधान ग्रंथि है, क्योंकि यह ग्रंथि अन्य ग्रन्थियों का नियमन करती है।
(ग) एड्रीनल (अधिवृक्क) ग्रन्थियां-ये एड्रीनालीन (एपिनेफ्रीन) एवं अन्य हार्मोनों का स्राव करती हैं, जिनसे व्यक्ति तनाव-युक्त एवं सावधान होता है।
(घ) स्वायत्त नाड़ी संस्थान का अनुकम्पी विभाग-यह विपत्ति की स्थिति में व्यक्ति को आक्रमण के लिए या भागने के लिए अंतिम रूप से तैयार करता है। शारीरिक स्थितियां
उपरोक्त तंत्र के संयुक्त क्रियाकलाप के द्वारा शरीर के भीतर घटित होने वाली शारीरिक स्थिति का क्रम इस प्रकार होगा
१. पाचक-क्रिया मन्द या बिल्कुल स्थगित हो जाती है। २. लार-ग्रन्थियों के कार्य-स्थान से मुंह सूख जाता है। ३. चयापचय की क्रिया में तेजी आ जाती है। ४. श्वास तेजी से चलने लगता है तथा हांफ चढ़ जाती है।
५. यकृत द्वारा संगृहीत शर्करा को अतिरिक्त रूप से रक्त प्रवाह में छोड़ा जाता है, जिसके माध्यम से उसे हाथ-पैर की मांसपेशियों को पहुंचाया जाता है।
६. शरीर के जिन भागों को अधिक रक्त की अपेक्षा हो, वहां तक उसे पहुंचाने के लिए हृदय की धड़कन बढ़ जाती है।
७. रक्तचाप बढ़ जाता है।
इन सारे परिवर्तनों के अलावा और भी अनेक जटिल परिवर्तन आते हैं।
इन परिवर्तनों के द्वारा शरीर में विद्युत-रासायनिक एवं स्रावों (हार्मोनों) की ऊर्जा अत्यधिक मात्रा में पैदा होती है, ताकि हम अपनी क्रियाओं को त्वरित बना सके। पर यदि कुछ करने की आवश्यकता न हो, तो यह अतिरिक्त ऊर्जा मांसपेशियों में तनाव के रूप में प्रतिबद्ध हो जाती है।
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