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प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग
तेजोलेश्या में आते ही आदतों में अपने आप परिवर्तन होने लग जाता है। उनमें स्वभावतः रूपान्तरण शुरू हो जाता है। पद्म-लेश्या में और भी अधिक बदलता है। शुक्ल-लेश्या में पहुंचते ही व्यक्तित्व का पूरा रूपांतरण (Transformation) हो जाता है।
२८.
भावधारा (लेश्या) के आधार पर आभामंडल बदलता है और लेश्या ध्यान के द्वारा आभामण्डल को बदलने से भावधारा भी बदल जाती है। इस दृष्टि से लेश्या ध्यान या चमकते हुए रंगों का ध्यान बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। हमारी भावधारा जैसी होती है, उसी के अनुरूप मानसिक चिंतन तथा शारीरिक मुद्राएं होती हैं। इस भूमिका में लेश्या ध्यान की उपयोगिता बहुत बढ़ जाती है।
तेजोलेश्या छोड़ती, मन पर दिव्य प्रभाव । उजले आभावलय से, सुख का प्रादुर्भाव ।। आकर्षण आभा-जनित, आकृति पर मृदुहास । पतझर में भी फूलता, कोई नव मधुमास ।। जागृत शक्ति निरोध की, सक्रिय पाचन तन्त्र । पापभीरुता, नम्रता, अचपलता का मन्त्र।। वह लेश्या है तेजमय, अणुओं का समुदाय । जो वैचारिक परिणति, वह भावात्मक आय ।। शुद्ध, शुद्धतर, शुद्धतम द्रव्यों का संयोग, तेज, ओज बढ़ता विपुल, मिटते दुःसह रोग ।। ध्यान-साधना काल में, लेश्या का विज्ञान | रंगों के आधार पर, हो पूरी पहचान ।।
भावना और अनुप्रेक्षा
ध्यान का अर्थ है प्रेक्षा - देखना । उसकी समाप्ति होने के पश्चात् मन की मूर्च्छा को तोड़ने वाले विषयों का अनुचिन्तन करना अनुप्रेक्षा है। जिस विषय का अनुचिन्तन बार-बार किया जाता है, उससे मन प्रभावित हो जाता है, इसलिए उस चिन्तन या अभ्यास को भावना कहा जाता है।
आत्मा का मौलिक स्वरूप चेतना है। उसके दो उपयोग हैं- देखना और जानना । हमारी चेतना शुद्ध स्वरूप में हमें उपलब्ध नहीं है, इसलिए हमारा दर्शन और ज्ञान निरुद्ध है, आवृत है। उस पर एक परदा पड़ा हुआ है। उसे दर्शनावरण और ज्ञानावरण कहा जाता है। वह आवरण अपने ही मोह के द्वारा डाला गया है। हम केवल जानते है और केवल देखते नहीं
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