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प्रेक्षाध्यान आधार और स्वरूप
'अहं' के उच्चारण से चक्रों पर विशिष्ट क्रियाएं होती हैं। प्लुत-ध्वनि विशेष प्रकार का वातावरण निर्मित करती है, जिससे व्यक्ति विचार शून्य, शरीर-शून्य एवं मन-शून्य स्थिति को प्राप्त कर चेतना में उपस्थित हो जाता है।
'अहं' की ध्वनि में 'अ' की ध्वनि से विशुद्धिकेन्द्र प्रकंपित होता है। क्योंकि 'अ' का उच्चारण-स्थल कंठ है। 'र' का उच्चारण-स्थल मूर्धा है। जिससे दर्शन, ज्योति एवं ज्ञानकेन्द्र प्रभावित होते हैं। उर पर विशिष्ट क्रियाए होती है। 'ह' का उच्चारण-स्थल पुनः कंठ है। वह विशुद्धि-केन्द्र को शक्ति-संपन्न करता है। 'म' (बिंदु) की ध्वनि से ओष्ठ स्थान एवं मस्तिष्क प्रकंपित होते हैं। नाद से ज्ञानकेन्द्र सक्रिय होता है जिससे शक्ति के अभिव्यक्त होने की क्षमता उत्पन्न होती है। महाप्राण ध्वनि
महाप्राण ध्वनि साधना-मार्ग में खोजी गई एक विलक्षण ध्वनि है, जिसके बार-बार गुंजार से शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर लाभदायक अनुभव किये जा सकते हैं।
महाप्राण ध्वनि की ध्वनि-तरंगें पूरे मस्तिष्क में फैल जाती हैं और मस्तिष्क को सक्रिय बनाती है। विचारों की चंचलता शांत होती है। ध्यान का वातावरण निर्मित होता है। मन की एकाग्रता बढ़ती है। दीर्घकाल तक अभ्यास करने से प्राण-शक्ति और स्मरण-शक्ति का विकास होता है।
अनेक अच्छी एवं कल्याणकारी क्रियाएं इसलिए आकर्षक या लोकप्रिय नहीं बनती कि उनको समझने या परखने का प्रयत्न तक नहीं किया जाता। सामान्यतः अनेक लोग उसे अन्धविश्वास कह कर मुंह फेर लेते हैं। ऐसी क्रियाओं का कम से कम तटस्थ अनुभव के द्वारा वस्तु-निष्ठ परीक्षण तो होना ही चाहिए और कभी-कभी वैज्ञानिक अध्ययन भी अपेक्षित होता है। उसके पश्चात् ही उसे तथ्यहीन या व्यर्थ माना जाना चाहिए। इसी कोटि की एक अभ्यास विधि है-अर्ह और महाप्राण की ध्वनि। यह एक विलक्षण ध्वनि है जिसके विधिवत् पुनः-पुनः उच्चारण के प्रयोग से न केवल शारीरिक स्तर पर अपितु मानसिक एवं भावात्मक स्तर पर भी अनेक लाभदायक परिणाम अनुभव किए जा सकते हैं। ध्वनि-तरंगों के शरीर-शास्त्रीय प्रभाव जब उनका उच्चारण किया जाता है तब ध्वनि-तरंगें समूचे
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