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प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग अन्तर में पदार्थातीत आनन्द का स्रोत बह रहा है, हम आनन्द केन्ट । 'अर्ह का ध्यान कर स्थायी आनन्द का अनुभव कर सकते हैं।
'अर्ह-१. हमारे अस्तित्व की स्मृति है। २. हमारे इष्ट की स्मृति है। ३ सहज आनन्द को जागृत करने वाला है। ४. मानसिक तनाव को दर करने वाला है। ५. मनःकायिक रोगों से बचाता है। ६. विकल्पों को शांत करने वाला है। ७. दाएं-बाएं पार्श्व में विद्यमान चैतन्य केन्द्र जागृत हो जाते हैं।
'अ' कुंडलिनी (तैजस शक्ति) का स्वरूप है। 'र' अग्निबीज है, इससे बुरे संस्कार नष्ट होते हैं। 'ह' आकाशबीज है, चिदाकाश का अनुभव बढ़ता है। 'म्' एक झंकार है, इससे ज्ञान-तंतु सक्रिय बनते हैं।
'अहं' के सभी वर्ण बहुत शक्तिशाली हैं। आनन्द केन्द्र में सूर्य जैसे तेजस्वी 'अहं' के निरंतर ध्यानाभ्यास से अहँ की अनुभूति विकसित होगी। पूरा व्यक्तित्व चैतन्यमय, आनन्दमय, और शक्तिमय बन जाएगा। तैजस-केन्द्र में सुनहरे रंग के कमल के मध्य अहँ की कल्पना करें। फिर ६ बार शरीर के चारों ओर इसके कवच-निर्माण का अनुभव करें। यह कवच बाहरी दुष्प्रभावों से बचाने में बहुत सक्षम है।
'अहँ की खेज हजारों-हजारों प्रयोक्ताओं के द्वारा ध्यान में अनुभूत की गई स्थिति है। 'ओम्' की तरह 'अहँ' भी परम सत्ता का प्रतीक है। जैन योगियों ने अहँ की परमेष्ठी की पांच स्थितियों का प्रतीक माना है। 'अहं' में पूरे नवकार मन्त्र के विशाल व्यक्तित्व को स्थापित किया गया है। इसलिए 'अर्ह' बीज-मन्त्र कहलाता है।
'अहं' की संरचना में जिन पांच बिंदुओं के संकेत छिपे हुए हैं, उसमें एक दूसरी दृष्टि भी है। मन्त्रों की रचना वर्णों से होती है। वर्णमाला का आदि अक्षर 'अ' है और अन्तिम अक्षर 'ह' है। 'अर्ह' में 'अ' और 'ह' को संयुक्त कर वर्णमाला को संक्षिप्त किया गया है। 'ह' पर स्थित रेफ, अग्नि और शक्ति के संकेत हैं। 'अहं' में 'म्' (बिंदु) अन्तर् ध्वनि को अभिव्यक्त करने का प्रतीक है। बिंदु और नाद से सूक्ष्म और सूक्ष्मतम तरंगें तरंगित होती हैं। 'अर्ह' के महत्त्व को योगशास्त्र में रहस्यमय निरूपित किया गया है। 'अहं' में 'अकार' अमृतमय और सुखमय है। स्फुटायमान 'हकार रत्नत्रय को संकलित करने वाला है। 'मकार' मोह-सहित कर्म-समूह का नाश करने वाला है।
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