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प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग प्राणायाम : प्रयोग में सावधानियां
. गंदे, दूषित वातावरण में प्राणायाम न करें। • तेज वायु में प्राणायाम न करें। • बिस्तर में मुंह ढककर प्राणायाम न करें।
भोजन के पश्चात् दो घण्टे तक प्राणायाम न करें। सहज प्राणायाम किसी भी समय किया जा सकता है। प्राणायाम करते समय पद्मासन एवं वज्रासन उत्तम आसन है। प्राणायाम से पूर्व जठर, आंत एवं मूत्राशय को खाली कर लें। आसन के पश्चात् कायोत्सर्ग कर प्राणायाम करें। शरीर को शिथिल एवं मुखाकृति को शांत एवं प्रतिक्रिया रहित रखें। शरीर के किसी अवयव पर तनाव न आए। प्राणायाम का अभ्यासी धूम्रपान एवं अन्य उत्तेजक द्रव्यों का सेवन न करे। प्राणायाम अभ्यासी बलपूर्वक श्वास-प्रश्वास की क्रिया न करे । कुंभक, अभ्यास क्रमिक बढ़ाना चाहिए, एक साथ नहीं। शीतकाल में शीतकारी, शीतली और चंद्रभेदी प्राणायाम सामान्यतः नहीं करना चाहिए। किंतु पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति इन प्राणायामों को कर सकते हैं। ग्रीष्मकाल में भस्त्रिका, सूर्यभेदी प्राणायाम, सर्वांगस्तंभन प्राणायाम न करें। किंतु कफ प्रधान प्रकृति वाला व्यक्ति इन्हें कर सकता है। वातप्रधान प्रकृति वाले ठण्डक पहुंचाने वाले प्राणायाम न करें क्योंकि इससे वायु दोष बढ़ता है। प्राणायाम के अभ्यास के समय पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन और सुखासन का उपयोग करें। वज्रासन में भी प्राणायाम किया
जा सकता है। • धुआं, धूल, शीलनयुक्त वातावरण में प्राणायाम न करें। • ज्वर-पीड़ित एवं विक्षिप्त व्यक्ति को प्राणायाम नहीं करना चाहिए। प्राणायाम में बैठने की मुद्रा शांत एवं स्थिर रहे।
अति आहार, तामसिक गरिष्ठ भोजन का उपयोग न करें। • दुर्बल एवं हृदय रोगी को भस्त्रिका, सर्वांगस्तंभन प्राणायाम के
प्रयोग नहीं करने चाहिए। • प्राणायाम सिद्धि के लिए उतावलापन न करें। आधा मिनट से
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