________________
यान . सिद्धान्त और प्रयोग
१६६ यह आलम्बन है संयम का, संवर का, समता का और सामायिक क अनप्रेक्षा के बिना संयम घटित नहीं हो सकता, संवर घटित नहीं हो सकता, सामायिक घटित नहीं हो सकता, मन में समता का अवतरण नहीं हो सकता।
इसलिए समाधि की अभ्यर्थना करने वाला साधक, समाधि को उपलब्ध होने की भावना रखने वाला साधक, दर्शन और ज्ञान की क्षमता को विकसित करने वाला साधक, अनुप्रेक्षा का आलम्बन ले, उसके प्रयोग के सहारे वस्तु-सत्यों को खोजे, वस्तु-स्वभाव को जाने। जो वस्तु-स्वभाव को जानता है, उसे प्रियता और अप्रियता के संवेदन से, राग और द्वेष से, अहंकार और ममकार से मुक्ति पाने का बहुत सरल उपाय उपलब्ध हो जाता है, और जो साधक प्रियता और अप्रियता, राग और द्वेष, अहंकार और ममकार से मुक्ति पा लेता है, वह आधि, व्याधि से मुक्त होकर समाधि प्राप्त करता है। व्याधि-मुक्ति
शरीर में नाना प्रकार की अवस्थाएं आती हैं। आदमी कभी दःखी होता है, कभी सुखी; कभी स्वस्थ होता है, कभी बीमार; कभी जवान होता है, कभी बूढ़ा। तीन दुःख बतलाए गए हैं-रोग, बुढ़ापा और मौत । आदमी को रोग के दुःख की अनुभूति होती है। दुःख आने पर आदमी बेचैन होता है। सामान्यतः हर आदमी को रोग आता है, पीड़ा होती है।
वर्तमान में वैज्ञानिक इस खोज में लगे हुए हैं कि बीमारी की अवस्था में भी पीड़ा न हो। वे पीड़ा कम करने के लिए पीड़ाशामक औषधियां देते हैं। दर्द शांत करने के लिए अफीम से बनने वाली गोलियां, मोर्फिन का इन्जेक्शन आदि, अरबों-खरबों रुपयों की औषधियां प्रतिवर्ष बाजार में बिक रही हैं और बहुत सारे सिरदर्द, जोड़ों का दर्द, घुटनों का दर्द-इन सब दर्दो को मिटाने के लिए गोलियां खाते रहते हैं।
दर्द को मिटाने के लिए और रोग को शांत करने के लिए चिकित्सा की अनेक पद्धतियां विकसित हुईं। एक पद्धति उसके साथ मैत्री स्थापित करने की है। आज के मनोवैज्ञानिक बता रहे हैं कि हम दस-बीस वर्षों में ऐसी मानसिक प्रक्रिया खोज लेंगे कि बीमार को ऐसा प्रशिक्षण दें कि वह बिना दवा के दर्द को सहन कर सके। हमारी एक शारीरिक प्रणाली है. उसमें पीड़ा-शामक रसायन बनते हैं (जिसे “एण्डोर्फीन" कहते हैं)। साधना
Scanned by CamScanner