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प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग व्यवहार के धरातल पर प्रेक्षा यान का ध्येय है व्यक्तित्व का समा निकास। विकास के कुछ पहलू यहा प्रस्तुत है
बौद्धिक और भावनात्मक विकास का संतुलन। आध्यात्मिक और वैज्ञानिक व्यक्तित्व का निर्माण। भावनात्मक परिवर्तन अपने संवेगों पर नियन्त्रण करने की क्षमता का विकास। रासायनिक परिवर्तन अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के स्रावों में परिवर्तन. पीड़ा के क्षणों में एंडोर्फिन जैसे शामक रसायनों का उत्पादन। नाड़ी-संस्थान पर नियंत्रण करने की क्षमता का विकास । नशे की आदत को बदलने की क्षमता का विकास । कार्यकौशल (efficency) में वृद्धि। मनःकायिक (psychosomatic) रोगों से मुक्ति। मानसिक और भावात्मक तनाव का विसर्जन । अपराधी और आक्रामक मनोवृत्ति से मुक्ति । अनुशासन का विकास। सहिष्णुता का विकास। एकाग्रता में वृद्धि। सामंजस्य करने की क्षमता का विकास। मैत्री-भाव का विकास मानवीय सम्बन्धों को उदार और उदात्त बनाने की क्षमता का विकास। संकल्प शक्ति का विकास। आत्म-विश्वास का जागरण।
अन्तर्दृष्टि का विकास। प्रेक्षा-ध्यान की उपसंपदा
लेनी पड़ती है यहां, उपसंपदा उदार। सहज समर्पित भाव से, बना हृदय निर्भार। मार्ग और सम्यक्त्ववर, संयममय आचार । यह उत्तम उपसंपदा, शुभ भविष्य संस्कार ।। पदन्यास अध्यात्म में, करता हूं अनिवार्य । प्रथम मार्ग उपसंपदा. देते गुरुवर आर्य ।।
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