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प्रेक्षाध्यान : सिद्धान्त और प्रयोग
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पान
है। 'सजेशन दो प्रकार से दिया जा सकता है। स्वयं व्यक्ति को सही (सद्माव) देता है या अन्य व्यक्ति के सजेशन को स्वयं सुनता है। हर प्रकार प्रचलित है। इन सुझावों के द्वारा अकल्पित बातें घटित हो जाती
अनुप्रेक्षा का प्रयोग सुझाव-पद्धति का प्रयोग है। यह ऑटो सजेशन'- स्वयं को स्वयं के द्वारा सुझाव देने की पद्धति है।
एक आदमी यदि प्रतिदिन सप्ताह तक यह सुझाव दे कि मैं बीमार हूं, तो निश्चित ही वह बीमार हो जाएगा। दूसरा व्यक्ति यदि यह सजेशन देता है कि मैं स्वस्थ हूं, मैं स्वस्थ हूं तो वह स्वास्थ्य का अनुभव करने लग जाएगा, सुझाव की पद्धति को समझकर सुझाव दें, बार-बार सुझाव दें, तो स्वास्थ्य बढ़ता जाएगा।
अनुप्रेक्षा की पद्धति स्वभाव-परिवर्तन की अचूक पद्धति है। इसके द्वारा जटिलतम आदत को बदला जा सकता है। आदत चाहे शराब पीने की हो, तम्बाकू सेवन की हो, चोरी की हो, झूठ या कपट की हो, बरे आचरण और बुरे व्यवहार की हो, अनुप्रेक्षा-पद्धति से उसमें परिवर्तन किया जा सकता है। जीवन-विज्ञान की पद्धति में 'प्रेक्षा', 'अनुप्रेक्षा' के प्रयोग कराए जाते हैं। पढ़ाया कुछ भी नहीं जाता। न कोई पुस्तक, न कोई भाषा, न कोई साहित्य, न कोई शोध या समीक्षा, न इतिहास, न गणित, न भूगोल, न विज्ञान। कुछ भी नहीं। केवल प्रयोग और केवल प्रयोग। प्रयोग के लिए साधन चाहिए। ये साधन बाहर से उपलब्ध करने की जरूरत नहीं है। ये अपने पास हैं। शरीर, वाणी, श्वास और वर्ण (रंग)-ये सब हमारे पास हैं। बस, केवल इनका प्रयोग करना है। कहां और कैसे प्रयोग करना है, यह सीखना पड़ता है। हमारे पास सब कुछ है। केवल अपेक्षा है सही संयोजन की। उनका कब, कहां, कैसे संयोजन किया जाए। जो व्यक्ति इसको जान लेता है, वह अपने भीतर की शक्तियों का, बिजली और रसायनों का, श्वास का सही संयोजन कर जीवन की अनेक समस्याओं को हल करना जान लेता है। ____ अनुप्रेक्षा का प्रयोग बहुत महत्त्वपूर्ण है असत् से बचने के लिए। सारा जप का विकास इसी आधार पर हुआ है। अनुप्रेक्षा के सिद्धांत के आधार पर जप का विकास हुआ है। इष्ट का जप करो, मन्त्र का जप करो, क्योंकि शुभ भाव और शुभ विचार तुम्हारे मन में रहेगा, तो अशुभ भाव को जागने का मौका नहीं मिलेगा। इसीलिए मन्त्र का आलम्बन लिया गया। कुछ लोग अध्यात्म-साधना के क्षेत्र में मन्त्र की उपयोगिता नहीं मानते। पर
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