________________
अनुप्रेक्षा
१५१ साधनाकाल में ध्यान के बाद स्वाध्याय और स्वाध्याय के बाद फिर ध्यान करना चाहिए। स्वाध्याय की सीमा में जप, भावना और अनुप्रेक्षा-इन सबका समावेश होता है। यथासमय और यथाशक्ति इन सबका प्रयोग आवश्यक है। 'ध्यान-शतक' में बताया गया है कि ध्यान को सम्पन्न कर अनित्य आदि अनुप्रेक्षाओं का अभ्यास करना चाहिए। ध्यान में होने वाले विविध अनुभवों में चित्त का कहीं लगाव न हो, इस दृष्टि से अनुप्रेक्षा के अभ्यास का बहुत महत्त्व है। धर्मध्यान के पश्चात् चार अनुप्रेक्षाओं का अभ्यास किया जाता है
१. एकत्व अनुप्रेक्षा २. अनित्य अनुप्रेक्षा ३. अशरण अनुप्रेक्षा
४. संसार अनुप्रेक्षा अनुप्रेक्षा क्या है?
__ प्रेक्षा-ध्यान का दूसरा अंग है-अनुप्रेक्षा । अनुप्रेक्षा का अर्थ है-ध्यान में जो कुछ हमने देखा, उसके परिणामों पर विचार करना। 'अनु' का अर्थ है-बाद में होने वाला । ध्यान में जो देखा, प्रेक्षा में जो देखा, देखने के बाद उसकी प्रेक्षा करना, परिणामों पर विचार करना, यह है अनुप्रेक्षा। ‘अनु' अर्थात् बाद में, प्रेक्षा अर्थात् विचार करना। जैसे-हमने देखा कि शरीर के अमुक भाग में स्पन्दन हो रहा है। परमाणु आ रहे हैं, जा रहे हैं। परमाणुओं का उपचय हो रहा है, अपचय हो रहा है, परमाणु घट रहे हैं, बढ़ रहे हैं। यह सारा देखा। अब सोचना है, उसका परिणाम क्या होगा? हम अनित्य अनुप्रेक्षा करेंगे कि जहां परमाणुओं का स्पन्दन है, आना-जाना है, वह नित्य नहीं हो सकता, वह अनित्य होगा। हम समझ लेंगे कि शरीर अनित्य है। शरीर अनित्य है-इसे जानने का आधार क्या है ? इसे जानने का आधार है प्रेक्षा । जब हमने प्रेक्षा में यह देखा कि शरीर में स्पन्दन है, कंपन है, गति है, परमाणुओं का आना-जाना है, परमाणुओं का चय-अपचय है, इसका अर्थ है कि वह अनित्यधर्मा है। इस अनित्यता का अनुभव करना, विचार करना, चिन्तन करना-यह है अनित्य अनुप्रेक्षा।
जीवन-विज्ञान का एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग है-अनुप्रेक्षा। सचाइयों को ज्ञात करने के लिए प्रेक्षा बहुत महत्त्वपूर्ण है, किन्तु आदतों को बदलने के लिए अनप्रेक्षा को 'सजेस्टोलॉजी' कहा जा सकता है। अनेक वैज्ञानिक दस पद्धति का प्रयोग करते हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में इसका प्रयोग हो रहा
Scanned by CamScanner