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और प्रयोग
'माइंड एण्ड बोडी नामक पुस्तक में लिखा है- "गहरी शिथिल अवस्था में रोगियों को लाकर सूचनात्मक भावना द्वारा उनके शारीरिक व्यवहार में उल्लेखनीय परिवर्तन लाया जा सकता है-इस बात को आज प्रचुर प्रमाणों
द्वारा सिद्ध किया गया है।"
भावना का अर्थ केवल कुछ सोच लेना मात्र नहीं है । उसका अर्थ है-- हमारे ज्ञान-तंतुओं को तथा कोशिकाओं को अपने वशवर्ती कर लेना, उन पर अपनी भावना को अंकित कर देना । हमारे शरीर में अरबों-खरबों न्यूरॉन्स हैं, तंत्रिका कोशिकाएं हैं। वे न्यूरॉन्स हमारी अनेक प्रवृत्तियों का नियमन करते हैं। जो संकल्प न्यूरॉन तक पहुंच जाता है, वह सफल हो जाता है। न्यूरॉन्स बड़े-बड़े काम संपादित करते हैं। इनकी कार्यप्रणाली को समझना बहुत ही कठिन है। अरबों-खरबों की संख्या में ये ज्ञान-तंतु हमारे मस्तिष्क में बिखरे पड़े हैं। इनका मन की शक्ति के जागरण में बहुत बड़ा उपयोग है। इन ज्ञान- तंतुओं में विचित्र क्षमताएं हैं, जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते । सम्मोहन का प्रयोग सूचना के आधार पर चलता है। सूचना के आधार पर शारीरिक अवयव भी उसी प्रकार काम करने लग जाते हैं। जब सूचनाओं के आधार पर ज्ञान-तंतु काम करने में तत्पर रहते हैं तब हम उनसे लाभ क्यों नहीं उठाएं ? अपने आप सूचना दें। पुराने को बदलने के लिए, नए को घटित करने के लिए सूचनाएं दें। उन तंतुओं के साथ आत्मीयता स्थापित करें। आप जो होना चाहेंगे, वह अवस्था घटित होने लगेगी। परिणमन प्रारंभ हो जाएगा। मन की शक्ति का विकास होने लगेगा ।
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ब्रेन वाशिंग का मुख्य साधन-भावना
भावना मस्तिष्क की धुलाई करने का बहुत बड़ा साधन है। एक ही बात को बार-बार दोहराते जाएं, उसकी पुनरावृत्ति करते जाएं, ऐसा करते-करते एक क्षण ऐसा आता है कि पुराने विचार छूट जाते हैं और नए विचार चित्त में जम जाते हैं। जब तक हमारी यह धारणा जमी हुई है कि सुख-दुःख देने वाला तीसरा व्यक्ति है, तब तक आदमी का रूपांतरण नहीं होता । भावनायोग के द्वारा जब इस विचार की धुलाई हो जाती है, इस विचार को उखाड़ दिया जाता है, तब सुख-दुःख की कोई भी घटना घटित होने पर आदमी यह नहीं मानेगा कि सुख-दुःख देने वाला स्वयं के अतिरिक्त कोई दूसरा व्यक्ति है। आदमी फिर यही सोचेगा, मैंने ऐसा ही
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