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लेश्या-ध्यान
१३७ मूल आत्मा (चैतन्य) है और उसके चारों ओर अति सूक्ष्म शरीर द्वारा निर्मित कषाय का वलय है। चैतन्य तो मलीन नहीं है, वह तो शुद्ध है, फिर यह अशुद्धता क्यों ? कारण स्पष्ट है। उस चैतन्य महासागर के चारों ओर एक वलय है-कषाय के महासागर का। एक प्रश्न और होता है कषाय का महासागर जब चैतन्य के महासागर को घेरे हुए है तो फिर शुद्धि का प्रश्न ही कहां उठता है। जो कुछ बाहर आएगा वह सारा अशुद्ध ही होगा। शुद्ध-लेश्या कैसे होगी? शुद्ध-भाव कैसे होगा? शुद्ध-अध्यवसाय कैसे होगा? कषाय से छनकर और कषाय के रस के साथ मिलकर जो कुछ भी बाहर आएगा वह मलिन, अपवित्र और अशुद्ध ही आएगा। शुद्ध कैसे होगा?
भाव की शुद्धि अध्यवसाय से होती है और अध्यवसाय की शुद्धि कषाय के मन्दीकरण से होती है। कषाय का मन्दीकरण दो प्रकार से किया जा सकता है। एक तो केवल ज्ञेय के प्रति जब चैतन्य के स्पंदन जागते हैं, तब उनके साथ कषाय की मलिनता नहीं जुड़ती, उनसे जो अध्यवसाय निर्मित होंगे वे शुद्ध बने रहेंगे। उनसे जो लेश्या बनेगी, वह शुद्ध बनेगी। केवल ज्ञेय के प्रति चैतन्य के स्पन्दन तभी जागते हैं जब रागात्मक या द्वेषात्मक भाव उनके साथ नहीं जुड़ते। यह घटित होता है-केवल ज्ञाता-द्रष्टा भाव के द्वारा जो प्रेक्षा-ध्यान का ही एक रूप है।
कषाय के मन्दीकरण का एक दूसरा रास्ता भी है-ध्यान-साधना के द्वारा मोह के विलय के स्पन्दनों को उत्पन्न करना। जब हम ध्यान का प्रयोग करते हैं, तब हमारे सूक्ष्म-शरीर के अन्दर दो प्रकार के स्पन्दन समानान्तर रेखा में चलते हैं-एक है मोह का स्पन्दन और दूसरा है मोह के विलय का स्पन्दन। दोनों स्पन्दन चलते हैं और वे भाव बनते हैं। कषाय जितना क्षीण होगा, मोह का स्पन्दन उतना ही निर्वीर्य बन जाएंगे, शक्तिशून्य बन जाएंगे। वह समाप्त नहीं होंगे किन्तु उसकी सक्रियता कम हो जाएगी, उनका प्रभाव क्षीण हो जाएगा। जब मोह के विलय का स्पंदन शक्तिशाली होंगे, तब भाव मंगलमय और कल्याणकारी होंगे। जब-जब मोह के स्पन्दन शक्तिशाली होते हैं-नील और कापोत-लेश्या के स्पन्दन शक्तिशाली होते हैं, तब-तब तेजस्-लेश्या और पद्म लेश्या के स्पन्दन क्षीण हो जाते हैं। जब-जब कषाय के स्पन्दन कम होते हैं, तब-तब तेजस्-लेश्या, पद्म-लेश्या और शुक्ल-लेश्या के स्पन्दन तथा भाव शक्तिशाली बनते जायेंगे। इस प्रकार जो तरंगें कषाय का वलय पार कर बाहर आ रही
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