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___ प्रेक्षाध्यान : सिद्धान्त और प्रयोग हैं। लेश्या में जितने रंग होते हैं, उतने ही रंग आभामण्डल में बिम्बित हो जाते हैं। अच्छे भाव दीप्तिमय होते हैं और बुरे भाव मलिन। आभामण्डल के जो चित्र लिए जाते हैं, उनमें जो रंग प्रतिबिम्बित होते हैं, उनके आधार पर क्षण-क्षण में बदलते हुए भाव भी पकड़ में आ सकते हैं। आभामण्डल के माध्यम से चेतना के परिवर्तन जाने जा सकते हैं। शरीर और मन के स्तर पर घटित होने वाली घटनाएं जानी जा सकती हैं। स्थूल शरीर की घटनाएं पहले सूक्ष्म शरीर में घटित होती हैं। उसका प्रतिबिम्ब आभामण्डल पर अंकित होता है। इसके अध्ययन से भविष्य में घटित होने वाली घटना का भी पता लगाया जा सकता है।
हमारा चित्त नाड़ी-संस्थान में क्रियाशील रहता है और उसका मुख्य केन्द्र है मस्तिष्क । वह अन्तर्जगत् में सूक्ष्म चेतना से जुड़ा हुआ है। वहीं से उसे गतिशीलता के आदेश-निर्देश प्राप्त होते रहते हैं और बाह्य-जगत् में वह अपने प्रतिबिम्बभूत आभामण्डल से जुड़ा हुआ होता है। जैसा चित्त होता है, वैसा आभामण्डल होता है और जैसा आभामण्डल होता है, वैसा चित्त होता है। चित्त को देखकर आभामण्डल को जाना जा सकता है और आभामण्डल को देखकर चित्त को जाना जा सकता है। चित्त निर्मल, तो आभामण्डल निर्मल होता है और चित्त मलिन, तो आभामण्डल मलिन होता है।
हमारी भावधारा जैसी होती है, उसी के अनुरूप मानसिक चिन्तन तथा शारीरिक मुद्राएं और इंगित तथा अंग-संचालन होता है। क्रोध की मुद्रा में रहने वाले व्यक्ति में क्रोध के अवतरण की संभावना बढ़ जाती है। क्षमा की मुद्रा में रहने वाला व्यक्ति के लिए क्षमा की चेतना में जाना सहज हो जाता है। योगियों का आभामण्डल
सामान्य और स्वस्थ मनुष्यों के आभामण्डलों में आयु, लिंग या जाति की भिन्नता का कोई प्रभाव नहीं देखा जाता। किन्तु योगियों-उच्च चरित्र वाले व्यक्तियों के आभामण्डल सामान्य व्यक्तियों से बिलकुल भिन्न पाए जाते हैं। उनमें दीप्ति अधिक होती है। आभामण्डल को देखकर व्यक्ति के चरित्र को जाना जा सकता है।
प्रयोजन सत्य की खोज
साधक के मन में यह प्रश्न सहज ही उभर सकता है कि ध्यान
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