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चैतन्य-केन्द्र-प्रेक्षा
११३ जब तेजस लेश्या के स्पन्दन जागते हैं, तब व्यक्ति को अनिर्वचनीय आनंदानुभूति होती है। उस आनन्द का प्रत्यक्ष अनुभव करने वाला ही उसे जान सकता है, वह उसे बता नहीं सकता। जिस व्यक्ति ने तेजस् लेश्या का कभी प्रयोग नहीं किया, ध्यान नहीं किया, वह व्यक्ति इस स्थूल शरीर से परे भी कोई आनन्द होता है. इन विषयों से परे भी कोई सुखानुभूति है, नहीं समझ पाता, कल्पना भी नहीं कर पाता। जब तक प्रयोग से नहीं गुजरता है, तब तक उसे ज्ञान ही नहीं होता कि ऐसा अनिर्वचनीय सुख भी हो सकता है। जिस सुख का अनुभव होता है, वह अपूर्व होता है। व्यक्ति सोचता है-मैंने मान रखा था कि सुख तो पदार्थ से ही मिलता है किन्तु आज यह स्पष्ट अनुभव हो रहा है कि जैसा सुख तेजस् लेश्या के स्पन्दनों के जागने पर होता है, वैसा सुख जीवन में किसी भी पदार्थ से नहीं मिल सकता। भ्रांति टूट जाती है, धारणाएं बदल जाती हैं।
अभ्यास १. मानव-शरीर की मुख्य अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का संक्षिप्त परिचय दीजिए। २. अन्तःस्रावी ग्रंथियां व्यक्ति की भावधारा और मनोदशाओं को कैसे
प्रभावित करती हैं ? ३. चैतन्य-केन्द्रों की प्रेक्षा क्यों आवश्यक है? ४. चैतन्य-केन्द्रों की प्रेक्षा की निष्पत्तियों को स्पष्ट कीजिए।
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