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शरीर-प्रेक्षा
__रक्त की सफाई और निस्यन्दन के अतिरिक्त गुर्दे रक्त की लाल कोशिकाओं के उत्पादन को बढ़ावा देते हैं। इसके अतिरिक्त वे रक्त में सोडियम व पोटेशियम, लवण, जल एवं अन्य तत्त्वों की मात्रा का नियमन करते हैं। गुर्दो के द्वारा जैविक जल-सन्तुलन को नियन्त्रित किया जाता है। गुर्दे हमारे रक्त को अत्यधिक अम्लीय या अत्यधिक प्रत्यम्लीय होने से बचाते हैं।
आध्यात्मिक आधार हमारा शरीर बहुत मूल्यवान् है। इसमें जितने रहस्य भरे पड़े हैं, वे रहस्य एक साधक ही जान सकता है। एक डॉक्टर भी नहीं जान सकता, एक कुशल शल्य-चिकित्सक भी उन रहस्यों को नहीं जानता, जो अध्यात्म के आचार्यों ने खोजे हैं। यद्यपि आध्यात्मिक दृष्टि से शरीर का मूल्य चिकित्सक नहीं कर सकता, फिर भी यह तो मानना पड़ेगा कि नाड़ी-तंत्र के बारे में आज का चिकित्सक अच्छी तरह से जानता है, उसका फंक्शन क्या है, उसकी सारी नाड़ियां किस प्रकार क्रिया करती हैं। इन सबको एक कुशल चिकित्सक अच्छी तरह जानता है, किन्तु इन नाड़ियों से किस प्रकार प्राण की धारा प्रवाहित की जा सकती है और कहां ले जाई जा सकती है, चित्त-वृत्तियों को कहां-कहां ले जाया जा सकता है, यह बात चिकित्सा-शास्र का विषय नहीं है।
प्राण
हृदय में प्राण का एक प्रकार का प्रवाह है, नासाग्र में प्राण का एक प्रकार का प्रवाह है, नाभि में प्राण का एक प्रकार का प्रवाह है, गुदामूल में प्राण का एक प्रकार का प्रवाह है और हमारी समूची त्वचा में प्राण का एक प्रकार का प्रवाह है। प्राण के कई प्रवाह हैं। केवल सप्त धातुमय शरीर को जानने मात्र से भीतर की यात्रा नहीं हो सकती, भीतर के दरवाजे नहीं खुल सकते। भीतरी दरवाजों को खोलने के लिए, भीतर की यात्रा करने के लिए इन सारे रहस्यों को अनावृत करना, उद्घाटित करना परम आवश्यक होता है।
- जैन दर्शन के अनुसार जीवन-शक्ति के मूल स्रोत मस्तिष्क, हृदय या फुफ्फुस नहीं, अपितु दस प्रकार के प्राण हैं-पांच प्राण इंद्रियों को बल प्रदान करते हैं, तीन प्राण मन, वाणी और शरीर को बल प्रदान करते हैं। श्वासोच्छ्वास के रूप में ऑक्सीजन और कार्बन डायोक्साइड को ग्रहण
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