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________________ 2/7 20. अथानुमानात्तत्कार्यतावसायः; तथाहि-अर्थालोककार्य विज्ञानं तदन्वयव्यतिरेकानुविधानात्, यद्यस्यान्वयव्यतिरेकावनुविधत्ते तत्तस्य कार्यम् यथाग्नेधूमः, अन्वयव्यतिरेकावनुविधत्ते चार्था लोकयोञ्जनम् इति। न चात्रासिद्धो हेतुस्तत्सद्भावे सत्येवास्य भावादभावे चाभावात्। इत्याशङ्कयाह तदन्वयव्यतिरेकानुविधानाभावाच्च केशोण्डुकज्ञानवन्नक्तञ्चरज्ञानवच्च॥7॥ अनुमान प्रमाण द्वारा हो जाया करता है, वह अनुमान इस प्रकार हैज्ञान, पदार्थ एवं प्रकाश का कार्य है, क्योंकि इन दोनों के साथ ज्ञान का अन्वय और व्यतिरेक पाया जाता है, जो जिसके साथ अन्वय व्यतिरेक रखता है वह उसका कार्य कहलाता है, जैसे अग्नि का कार्य धूम है अतः वह अग्नि के साथ अन्वय व्यतिरेक रखता है, ज्ञान पदार्थ और प्रकाश के साथ अन्वय व्यतिरेक रखता ही है अतः वह उनका कार्य है। यह अन्वय व्यतिरेक विधानक हेतु असिद्ध भी नहीं है, क्योंकि पदार्थ एवं प्रकाश के होने पर ही ज्ञान होता है और न होने पर नहीं होता? समाधान-उपरोक्त शंका होने पर उसका निरसन करते हुए श्री माणिक्यनंदी आचार्य सूत्र का सर्जन करते हैं तदन्वयव्यतिरेकानुविधानाभावाच्च केशोण्डुकानवन्नक्तञ्चरज्ञानवच्च ॥7॥ सूत्रार्थ- पदार्थ और प्रकाश के साथ ज्ञान का अन्वय व्यतिरेक नहीं पाया जाता, जैसे मच्छर के ज्ञान का तथा बिलाव आदि रात्रि में विचरण करने वाले प्राणियों के ज्ञान का पदार्थ और प्रकाश के साथ अन्वय व्यतिरेक नहीं पाया जाता। 21. इसके पूर्व छठे सूत्र में कहा था कि पदार्थ और प्रकाश ज्ञान के कारण नहीं हैं, क्योंकि वे ज्ञान द्वारा परिच्छेद्य हैं, अब इस सातवें सूत्र में दूसरा और भी हेतु देते हैं कि ज्ञान के साथ पदार्थ और प्रकाश का अन्वय व्यतिरेक नहीं पाया जाता, इसलिये भी वे दोनों ज्ञान के प्रमेयकमलमार्तण्डसार:: 61
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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