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________________ 1/10 50. ननु शाब्दी प्रतिपत्तिरेषा 'घटमहमात्मना वेद्मि' इति नानुभवप्रभावा तस्यावस्तदविनाभावाभावात्, अन्यथा 'अङ्गल्यग्रे हस्तियूथशतमास्ते' इत्यादिप्रतिपत्तेरप्यनुभवत्वप्रसङ्गस्तत्कथमतः प्रमात्रानादीनां प्रत्यक्षताप्रसिद्धिरित्याह शब्दानुच्चारणेपि स्वस्यानुभवनमर्थवत् on 51. यथैव हि घटस्वरूपप्रतिभासो घटशब्दोच्चारणमन्तरेणापिप्रतिभासते। तथा प्रतिभासमानत्वाच्च न शाब्दस्तथा प्रमात्रादीनां स्वरूपस्य 50. पुनः मीमांसक शंका करते हैं कि 'घटमहमात्मना वेद्मि' अर्थात् 'मैं अपने द्वारा घट को जानता हूँ' इस प्रकार की जो प्रतिपत्ति है वह शब्दस्वरूप है, अनुभव स्वरूप नहीं है, क्योंकि इस प्रतिपत्ति का अनुभव के साथ अविनाभाव नहीं है। यदि इस प्रतिपत्ति को अनुभव स्वरूप माना जाये तो 'अंगुली के अग्र भाग पर सैंकड़ों हाथियों का समूह है'-इत्यादि शाब्दिक प्रतिपत्ति को भी अनुभव स्वरूप मानना पड़ेगा, अतः इस शब्द प्रतिपत्ति मात्र से प्रमाता, प्रमाण आदि में प्रत्यक्षता कैसे सिद्ध हो सकती है? अर्थात् नहीं हो सकती। कहने का तात्पर्य यह है कि मैं अपने द्वारा घट को जानता हूँ इत्यादि वचन तो मात्र वचन रूप ही हैं। वैसे संवेदन भी हो ऐसी बात नहीं है; इसलिए इस वाक्य से प्रमाता आदि को प्रत्यक्षरूप होना कैसे सिद्ध हो सकता है? इस प्रकार की शंका होने पर ही आगे आचार्य माणिक्यनन्दि ने सूत्रबद्ध समाधान दिया है शब्दानुच्चारणेपि स्वस्यानुभवनमर्थवत् ॥10॥ सूत्रार्थ- शब्दों के अनुच्चारण से भी पदार्थ के समान अपना अनुभव होता है। तात्पर्य यह है कि शब्दों का उच्चारण किये बिना भी अपना अनुभव होता है, जैसे कि पदार्थों का घट आदि नामोच्चारण नहीं करें तो भी उनका ज्ञान होता है। 51. जैसे 'घट है' ऐसा वाक्य नहीं बोले तो भी घट का स्वरूप हमें प्रतीत होता है, क्योंकि वैसा हमें अनुभव ही होता है, यह प्रतीति 42:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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