________________ 7/1 18. कः पुनरत्र बहुविषयो नयः को वाल्पविषयः कश्चात्र कारणभूतः कार्यभूतो वेति चेत्? 'पूर्वः पूर्वो बहुविषयः कारणभूतश्च पर: परोल्पविषयः कार्यभूतश्च' इति ब्रूमः। संग्रहाद्धि नैगमो बहुविषयो भावाऽभावविषयत्वात्, यथैव हि सति सङ्कल्पस्तथाऽसत्यपि, सङ्ग्रहस्तु ततोल्पविषयः सन्मात्रगोचरत्वात्, तत्पूर्वकत्वाच्च तत्कार्यः। संग्रहाद्व्यवहारोपि तत्पूर्वक: सद्विशेषावबोधकत्वादल्पविषय एव। व्यवहारात्कालत्रितयवृत्त्यर्थकहलाते हैं। 18. प्रश्न- इन नयों में कौन सा नय बहुविषय वाला है और कौन सा नय अल्पविषय वाला है, तथा कौन सा नय कारणभूत और कौन सा नय कार्यभूत है? समाधान- पूर्व पूर्व का नय बहुविषय वाला है एवं कारणभूत है, तथा आगे-आगे का नय अल्पविषय वाला है एवं कार्यभूत है। संग्रह से नैगम बहुत विषय वाला है क्योंकि नैगम सद्भाव और अभाव दोनों को विषय करता है, अर्थात् विद्यमान वस्तु में जैसे संकल्प सम्भव है वैसे अविद्यमान वस्तु में भी सम्भव है, इस नैगम से संग्रहनय अल्पविषय वाला है, क्योंकि यह सन्मात्र-सद्भावमात्र को जानता है। तथा नैगमपूर्वक होने से संग्रहनय उसका कार्य है। व्यवहार भी संग्रहपूर्वक होने से कार्य है एवं विशेष सत् का अवबोधक होने से अल्पविषयवाला है। व्यवहार तीनकालवर्ती अर्थ का ग्राहक है उस पूर्वक ऋजुसूत्र होता है अतः ऋजुसूत्र उसका कार्य है एवं केवल वर्तमान अर्थ का ग्राहक होने से अल्पविषयवाला है। ऋजुसूत्रनय कारक आदि का भेद होने पर भी अभिन्न अर्थ को ग्रहण करता है, और शब्दनय कारकादि के भेद होने पर अर्थ में भेद ग्रहण करता है। अतः ऋजुसूत्र से शब्दनय अल्प विषयवाला है तथा ऋजुसूत्रपूर्वक होने से शब्दनय उसका कार्य है। शब्दनय पर्यायवाची शब्द या पर्याय के भिन्न होने पर भी उनमें अर्थभेद नहीं करता किन्तु समभिरूढ़नय पर्याय के भिन्न होने पर अर्थ में भेद करता है अत: शब्दनय से समभिरूढ़नय अल्पविषयवाला है एवं तत्पूर्वक होने से 318:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः सपाला हा