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________________ 7/1 5. ऋजु प्राञ्जलं वर्तमानक्षणमात्रं सूत्रयतीत्यूजुसूत्रः 'सुखक्षण: सम्प्रत्यस्ति' इत्यादि। द्रव्यस्य सतोप्यनर्पणात्, अतीतानागतक्षणयोश्च विनष्टानुत्पन्नत्वेनासम्भवात्। न चैवं लोकव्यवहारविलोपप्रसङ्गः; नयस्याऽस्यैवं विषयमात्रप्ररूपणात्। लोकव्यवहारस्तु सकलनयसमूहसाध्य इति। हो रहा है वह नहीं हो सकेगा, जीवद्रव्य की वर्तमान की जो मनुष्य पर्याय है उसकी जो मनुष्यपने से साक्षात् अर्थ क्रिया प्रतीत होती है वह नही हो सकेगी। पुद्गल परमाणुओं के पिंड़ स्वरूप स्कन्ध की जो अर्थ क्रियाये हैं [दृष्टिगोचर होना, उठाने धरने में आ सकना, स्थूल रूप होना, प्रकाश या अन्धकार स्वरूप होना इत्यादि] वे भी समाप्त होगी, केवल कल्पना मात्र में कोई अर्थ क्रिया [वस्तु का उपयोग में आना] नहीं होती है जैसे स्वप्न में स्थित काल्पनिक पदार्थ में अर्थ क्रिया नहीं होती। अतः संग्रह नय द्वारा गृहीत पदार्थों में भेद या विभाग को करने वाला व्यवहार नय सत्य एवं उसका विषय जो भेद रूप है वह भी पारमार्थिक है। जो लोक व्यवहार में क्रियाकारी है अर्थात् जिन पदार्थों के द्वारा लोक का जप, तप, स्वाध्याय, ध्यानरूप, धर्म और मोक्ष पुरुषार्थ एवं स्नान भोजन, व्यापार आदि काम तथा अर्थ पुरुषार्थ सम्पन्न हों वे भेदाभेदात्मक पदार्थ वास्तविक ही हैं और उनको विषय करने वाला व्यवहार नय भी वास्तविक है क्योंकि नयरूप ज्ञान ही चाहे प्रमाणरूप ज्ञान हो उसमें प्रमाणता तभी स्वीकृत होती है जब उनके विषयभूत पदार्थ व्यवहार के उपयोगी या अर्थ क्रिया वाले हो। 5. ऋजुसूत्रनय का लक्षण ऋजु स्पष्टरूप वर्तमान मात्र क्षण को, पर्याय को जानने वाला ऋजुसूत्रनय है। जैसे इस समय सुख पर्याय इत्यादि। यहाँ अतीतादि द्रव्य सत् है किन्तु उसकी अपेक्षा नहीं है, क्योंकि वर्तमान पर्याय में अतीत पर्याय तो नष्ट हो चुकने से असम्भव है और अनागत पर्याय अभी उत्पन्न ही नहीं हुई है। इस तरह वर्तमान मात्र को विषय करने से लोक व्यवहार के लोप की आशंका भी नहीं करनी चाहिए, यहाँ केवल इस नय का विषय बताता है। लोक व्यवहार तो सकल नयों के समुदाय से 310:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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