________________ सार: 322 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः 7/1 सहार्पितोभयनयाश्रयणात्। एवमवक्तव्योत्तराः शेषास्त्रयो भङ्गा यथायोगमुदाहार्याः। 21. ननु चोदाहृता नयसप्तभङ्गी। प्रमाणसप्तभङ्गीतस्तु तस्याः किङ्कतो विशेष इति चेत्? 'सकलविकलादेशकृतः' इति ब्रूमः। विकलादेशस्वभावा हि नयसप्तभङ्गी वस्त्वंशमात्रप्ररूपकत्वात्। सकलादेशस्वभावा तु प्रमाणसप्तभङ्गी यथावद्वस्तुरूपप्ररूपकत्वात्। तथा हि-स्यादस्ति जीवादिवस्तु [अस्तिनास्ति रूप] युगपत् उभयनय की अपेक्षा स्याद् प्रस्थादि अवक्तव्य हैं। इसी तरह अवक्तव्य रूप शेष तीन भंगों का कथन करना चाहिए। वे इस प्रकार हैं-नैगम और अक्रम की अपेक्षा लेने पर प्रस्थादि स्यात् अस्ति अवक्तव्य है। संग्रह आदि में से किसी एक नय की अपेक्षा और अक्रम की अपेक्षा लेने पर प्रस्थादि स्यात् नास्ति अवक्तव्य है। नैगम तथा संग्रहादि में से एक एवं अक्रम की अपेक्षा लेने पर प्रस्थादि स्यात् अस्ति नास्ति अवक्तव्य हैं। 21. पुनः शंका करते हैं कि नय सप्तभङ्गी का प्रतिपादन तो हुआ किन्तु प्रमाण सप्तभङ्गी और नय सप्तभङ्गी में क्या विशेषता है? अथवा भेद या अन्तर है? इस शंका का समाधान करते हुए आचार्य प्रभाचन्द्र कहते हैं कि सकलादेश और विकलादेश की अपेक्षा विशेषता या भेद है। वस्तु के अंशमात्र का प्ररूपक होने से नयसप्तभङ्गी विकलादेश स्वभाव वाली है और यथावत् वस्तु स्वरूप (पूर्णवस्तु) की प्ररूपक होने से प्रमाणसप्तभङ्गी सकलादेश स्वभाव वाली है। ऊपर नयसप्तभङ्गी के उदाहरण दिये थे अब यहाँ प्रमाण सप्तभङ्गी का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं 1. स्वद्रव्य क्षेत्रकाल भाव की अपेक्षा स्यात् अस्ति जीवादि वस्तु। 2. परद्रव्य क्षेत्र काल भाव की अपेक्षा स्यात् नास्ति जीवादि वस्तु। 3. क्रमार्पित स्वद्रव्यादि एवं परद्रव्यादि की अपेक्षा स्यात् अस्ति-नास्ति जीवादि वस्तु।