________________ 312 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः 7/1 पदार्थमादृताः-यो विश्वं द्रक्ष्यति सोस्य पुत्रो भविता' इति, भविष्यत्कालेनातीतकालस्याऽभेदाभिधानात् तथा व्यवहारोपलम्भात्। तच्चानुपपन्नम्। कालभेदेप्यर्थस्याऽभेदेऽतिप्रसङ्गात्, रावणशङ्गचक्रवर्तिशब्दयोरप्यतीतानागतार्थगोचरयोरेकार्थतापत्तेः। अथानयोभिन्नविषयत्वान्नैकार्थता; 'विश्वदृश्वा भविता' इत्यनयोरप्यसौ मा भूत्तत एव। न खलु 'विश्वं दृष्टवान् विश्वदृश्वा' इति शब्दस्य योऽर्थोतीतकालः, स 'भविता' इति शब्दस्यानागतकालो युक्तः; पुत्रस्य भाविनोऽतीतत्वविरोधात्। अतीतकालस्याप्यनागतत्वाध्यारोपादेकार्थत्वे तु न परमार्थतः कालभेदेप्यभिन्नार्थव्यवस्था स्यात्। 7. तथा 'करोति क्रियते' इति कर्तृकर्मकारकभेदेप्यभिन्नमर्थं त एवाद्रियन्ते। 'यः करोति किञ्चित् स एव क्रियते केनचित्' इति प्रतीतेः। प्रकार का व्यवहार उपलब्ध होता है। किन्तु शब्दनय से यह अयुक्त है। काल भेद होते हुए भी यदि अर्थ में भेद न माना जाय तो अतिप्रसंग होगा, फिर तो अतीत और अनागत अर्थ के गोचर हो रहे रावण और शंख चक्रवर्ती शब्दों के भी एकार्थपना प्राप्त होगा। यदि कहा जाय कि रावण और शंख चक्रवर्ती ये दो शब्द भिन्न भिन्न विषय वाले हैं अतः उनमें एकार्थपना नहीं हो सकता तो विश्वदृश्वा और भविता इन दो शब्दों में एकार्थपना नहीं होना चाहिए। क्योंकि ये दो शब्द भी भिन्न भिन्न विषय वाले हैं। देखिये “विश्वं दृष्टवान् इति विश्वदृश्वा" ऐसा विश्वदृश्वा शब्द का जो अर्थ अतीत काल है वह “भविता" इस शब्द का अनागत काल मानना युक्त नहीं है। जब पुत्र होना भावी है तब उसमें अतीतपना कैसे हो सकता है। अतीतकाल का अनागत में अध्यारोप करने से एकार्थपना बन जाता है यदि ऐसा कहो तो काल भेद होने पर भी अभिन्न अर्थ की व्यवस्था मानना पारमार्थिक नहीं रहा, काल्पनिक ही रहा। 7. तथा करोति क्रियते इनमें कर्तृकारक और कर्मकारक की अपेक्षा भेद होने पर भी वैयाकरण लोग इनका अभिन्न अर्थ ही करते हैं, जो करता है वही किसी द्वारा किया जाता है ऐसी दोनों कारकों में उन्होंने अभेद प्रतीति मानी है किन्तु वह ठीक नहीं यदि कर्तृकारक और