________________ 7/1 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः 311 यस्तु बहिरन्तर्वा द्रव्यं सर्वथा प्रतिक्षिपत्यखिलार्थानां प्रतिक्षणं क्षणिकत्वाभिमानात् स तदाभासः, प्रतीत्यतिक्रमात्। बाधविधुरा हि प्रत्यभिज्ञानादिप्रतीतिर्बहिरन्तश्चैक द्रव्यं पूर्वोत्तरविवर्त्तवर्त्ति प्रसाधयतीत्युक्तमूर्द्धतासामान्यसिद्धिप्रस्तावे। प्रतिक्षणं क्षणिकत्वं च तत्रैव प्रतिव्यूढमिति। 6. कालकारकलिङ्गसंख्यासाधनोपग्रहभेदाद्भिन्नमर्थं शपतीति शब्दो नयः शब्दप्रधानत्वात्। ततोऽपास्तं वैयाकरणानां मतम्। ते हि “धातुसम्बन्धे प्रत्यया:"26 इति सूत्रमारभ्य 'विश्वदृश्वाऽस्य पुत्रो भविता' इत्यत्र कालभेदेप्येक ऋजुसूत्राभास का लक्षण जो अन्तस्तत्त्व आत्मा और बहिस्तत्त्व अजीवरूप पुद्गलादि का सर्वथा निराकरण करता है अर्थात् द्रव्य का निराकरण कर केवल पर्याय को ग्रहण करता है, सम्पूर्ण पदार्थों को प्रतिक्षण के अभिमान से सर्वथा क्षणिक ही मानता है वह अभिप्राय ऋजुसूत्राभास है। क्योंकि इसमें प्रतीति का उल्लंघन है। प्रतीति में आता है कि निर्बाध प्रत्यभिज्ञान प्रमाण अंतरंग द्रव्य और बहिरंग द्रव्य को पूर्व व उत्तर पर्याय युक्त सिद्ध करते हैं, इसका विवेचन उर्ध्वतासामान्य की सिद्धि करते समय हो चुका है। तथा उसी प्रसंग में प्रतिक्षण के वस्तु के क्षणिकत्व का भी निरसन कर दिया है। 6. शब्दनय का लक्षण काल, कारक, लिंग, संख्या, साधन और उपग्रह के भेद से जो भिन्न अर्थ को कहता है वह शब्दनय है इसमें शब्द ही प्रधान है। इस नय से शब्द भेद से अर्थ भेद नहीं करने वाले वैयाकरणों के मत का निरसन होता है वैयाकरण पंडित “धातुसंबंधे प्रत्ययाः" इस व्याकरण सूत्र का प्रारंभ कर “विश्व दृश्वा अस्य पुत्रो भविता" जिसने विश्व को देख लिया है ऐसा पुत्र इसके होगा, इस तरह काल भेद में भी एक पदार्थ मानते हैं। जो विश्व को देख चुका है वह इसके पुत्र होगा, ऐसा जो कहा है इसमें भविष्यत् काल से अतीतकाल का अभेद कर दिया है। उस 26. पाणिनि व्याकरण 3/4/1