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________________ 6/61 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः 281 वेधेत्यत्रेत्युपरम्यते। अथेदानीं विषयाभासप्ररूपणार्थं विषयेत्याधुपक्रमतेविषयाभासः सामान्यं विशेषो द्वयं वा स्वतन्त्रम् ॥61॥ मानना इष्ट है किन्तु अनुमान तभी सिद्ध हो सकता है जब उस अनुमान में स्थित जो साध्य साधन का अविनाभाव है उनको जानने वाला तर्क ज्ञान स्वीकार किया जाय। यदि चार्वाक आदि कहे कि हम अनुमान को मानकर उनका अन्तर्भाव प्रत्यक्षादि में ही कर लेंगे? तब यह बात गलत है क्योंकि जब इस तर्कादि ज्ञान में प्रतिभास विभिन्न हो रहा है तो उसे अवश्य ही पृथक् प्रमाणरूप से स्वीकार करना होगा अन्यथा इन चार्वाक आदि का इष्ट कार्य सिद्ध नहीं हो सकता। इस प्रकार परवादियों की प्रमाण गणना सही नहीं है ऐसा निश्चित होता है। विषयाभास अब इस समय विषयाभास का वर्णन करते हैंविषयाभास: सामान्यं विशेषो द्वयं वा स्वतन्त्रम् ॥61॥ सूत्रार्थ- प्रमाण का विषय “सामान्यविशेषात्मा तदर्थो विषयः" इस प्रकार बतलाया था इससे विपरीत अकेला सामान्य अथवा अकेला विशेष या सामान्य और विशेष दोनों स्वतन्त्ररूप से प्रमाण के विषय हैं ऐसा कहना विषयाभास है। सत्ताद्वैतवादी [ब्रह्माद्वैतवादी आदि] प्रमाण का विषय सामान्य है, ऐसा कहते हैं अर्थात् प्रमाण मात्र सामान्य को जानता है सामान्य को छोड़कर अन्य पदार्थ ही नहीं है अतः प्रमाण अन्य को कैसे जानेगा?इस प्रकार इन सत्ताद्वैतवादियों की मान्यता है। बौद्ध प्रमाण का विषय केवल विशेष है ऐसा बताते हैं। नैयायिक-वैशेषिक प्रमाण का विषय सामान्य और विशेष मानते तो हैं किन्तु इन दोनों का अस्तित्त्व सर्वथा पृथक् पृथक् बतलाते हैं। वे सामान्य सर्वथा एक स्वतन्त्र पदार्थ है और
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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