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________________ 274 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः 6/53-54 सांख्यादिः अङ्गल्यग्रे हस्तियूथशतमास्ते इति च ॥3॥ उच्चारयति। न खल्वज्ञानमहामहीधराक्रान्तः। पुरुषो यथावद्वस्तु विवेचयितुं समर्थः। ननु चैवंविधपुरुषवचनोद्भूतं ज्ञानं कस्मादागमाभासमित्याहविसंवादात् ॥54॥ 60. प्रतिपन्नार्थविचलनं हि विसंवादो विपरीतार्थोपस्थापकप्रमाणावसेयः। स चात्रास्तीत्यागमाभासता। हैं वे जो वचन बोलते है वे वचन आगमाभास हैं आगे उसका उदाहरण देते हैं अंगुल्यग्रे हस्तियूथशतमास्ते इति च॥53॥ सूत्रार्थ- अंगुली के अग्रभाग पर हाथियों के सैकड़ों समूह रहते हैं, इत्यादि वचन एवं तत्सम्बन्धी ज्ञान सभी आगमाभास है। ___ इस तरह के वचन आगमाभास इसलिये कहे जाते हैं कि इस तरह का वचनालाप अज्ञानरूपी बड़े भारी पर्वत से आक्रान्त हुए पुरुष ही बोला करते हैं, उनके द्वारा अज्ञान होने के कारण वास्तविक वस्तु तत्त्व का विवेचन नहीं हो सकता। शंका- इस तरह मोहादि से आक्रान्त पुरुष के वचन से उत्पन्न हुआ ज्ञान आगमाभास क्यों कहा जाता है? विसंवादात् ॥54॥ सूत्रार्थ- रागी मोही पुरुष के वचन विसंवाद कराते हैं अतः आगमाभास है। 60. जो प्रमाण प्रतिपन्न पदार्थ है उससे विचलित होना विसंवाद कहलाता है अर्थात् विपरीत अर्थ को उपस्थित करने वाला प्रमाण ही विसंवादक है, ऐसा विसंवाद रागी मोही पुरुषों के वचन से उत्पन्न हुए
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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