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________________ 6/51-52 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः 273 अथेदानीमागमाभासप्ररूपणार्थमाहरागद्वेषमोहाक्रान्तपुरुषवचनाज्जातमागमाभासम् ॥51॥ 58. रागाक्रान्तो हि पुरुषः क्रीडावशीकृतचित्तो विनोदार्थं वस्तु किञ्चिदप्राप्नुवन्माणवकैरपि सह क्रीडाभिलाषेणेदं वाक्यमुच्चारयति यथा नद्यास्तीरे मोदकराशयः सन्ति धावध्वं माणवका इति ॥52॥ 59. तथा क्वचित्कार्ये व्यासक्तचित्तो माणवकैः कदर्थितो द्वेषाक्रान्तोप्यात्मीयस्थानात्तदुच्चाटनाभिलाषेणेदमेव वाक्यमुच्चारयति। मोहाक्रान्तस्तु आगमाभास आगे आचार्य आगमाभास का प्ररूपण करते हैंरागद्वेषमोहाक्रान्तपुरुषवचनाज्जातमागमाभासम् ॥51॥ सूत्रार्थ- राग से युक्त अथवा द्वेष मोहादि से युक्त जो पुरुष है ऐसे पुरुष के वचन के निमित्त से जो ज्ञान होता है वह आगमाभास कहलाता है। 58. रागादि से आक्रान्त व्यक्ति कभी क्रीड़ा कौतुहल के वश होकर विनोद के लिये [मनोरंजन के लिये] कुछ वस्तु को जब नहीं पाता तब बालकों के साथ भी क्रीड़ा की अभिलाषा से इस तरह बोलता है कियथा नद्यास्तीरे मोदकराशयः सन्ति धावध्वं माणवकाः ॥52॥ सूत्रार्थ- हे बालकों! दौड़ो-दौड़ो नदी के किनारे बहुत से मोदक लड्डुओं के ढेर लगे हैं। इस तरह बालकों के साथ मनोरंजन करते हुए कोई बात करे तो वे वचन आगमाभास कहलाते हैं, क्योंकि इनमें सत्यता नहीं है। 59. कभी-कभी जब कोई व्यक्ति किसी कार्य में लगा रहता है उस समय बालक उसे परेशान करते हैं तो वह बालकों से पीड़ित हो क्रोध-द्वेष में आकर अपने स्थान से बालकों को भगाने के लिये इस तरह के वचन बोलता है। मोह-मिथ्यात्व से आक्रान्त हुआ पुरुष जो कि परवादी सांख्यादि
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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