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प्रमेयकमलमार्त्तण्डसार:
तन्नापौरुषेयमिति । यन्नापौरुषेयं तन्नामूर्तम्' इति हि साध्यव्यतिरेके साधनव्यतिरेकः प्रदर्शनीयस्तथैव प्रतिबन्धादिति ।
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तो वह कहलाता है जिसे सिद्ध करना है, और जिनके द्वारा यह सिद्ध किया जाय उसे साधन कहते हैं, साध्य के साथ साधन का अविनाभाव सम्बन्ध तो होता है किन्तु साधन के साथ साध्य का अविनाभाव होना जरूरी नहीं है। अतः पंचावयवरूप अनुमान प्रयोग करते समय यह नियम लक्ष्य में रखकर वाक्य रचना करनी होगी अन्यथा गलत होगा जैसे शब्द अपौरुषेय (साध्य) है क्योंकि वह अमूर्त (साधन) है यहाँ
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अपौरुषेय साध्य को अमूर्तरूप साधनसिद्ध कर रहा है अतः अपौरुषेय के साथ अमूर्त्त का अविनाभाव तो है किन्तु अमूर्त के साथ अपौरुषेय का अविनाभाव नहीं है।
बिजली आदि पदार्थ अमूर्त न होकर भी अपौरुषेय है, अतः ऐसा व्यतिरेक नहीं दिखा सकते कि जहाँ जहाँ अमूर्त नहीं होता वहाँ वहाँ अपौरुषेय नहीं होता ।
पहले अन्वय दृष्टान्ताभास में भी यही बात कही थी कि अन्वय यदि उल्टा दिखाया जाय तो वह दृष्टान्ताभास बनता है जैसे किसी ने कहा कि जो अपौरुषेय होता है वह अमूर्त होता है अतः गलत ठहरता है, जो अपौरुषेय हो वह अमूर्त ही हो ऐसा नियम नहीं है, इसलिये अनुमान प्रयोग में अन्वय व्याप्ति तथा व्यतिरेक व्याप्ति को सही दिखाना चाहिए अन्यथा दृष्टान्ताभास बनेंगे। अन्वय या व्यतिरेक दृष्टान्त देते समय यह लक्ष्य अवश्य देखे कि कही साध्य या साधन अथवा दोनों से विकल रहित ऐसा दृष्टान्त उदाहरण तो प्रस्तुत नहीं कर रहे। यदि इस बात का लक्ष्य नहीं रखा जायगा तो वे सब दृष्टान्ताभास बनते जायेंगे।
दृष्टान्त में साध्य न रहे अथवा साध्य होकर भी यदि साधन रहे तो भी वह दृष्टांताभास ही कहलायेगा, इसीलिये दृष्टान्त शब्द की निरुक्ति है कि "दृष्टी साध्य साधन रूप धर्मों [अंती] यस्मिन् स दृष्टान्ता: " देखे जाते हैं साध्य साधन के धर्म जिसमें वह दृष्टान्त है।
अनुमान के कितने अंग या अवयव होते हैं इस विषय की चर्चा