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________________ 268 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः 6/45 विपरीतव्यतिरेकश्च यन्नामूर्तं तन्नापौरुषेयम् ॥45॥ 55. विपरीतो व्यतिरेको व्यावृत्तिप्रदर्शनं यस्येति। यथा यन्नामूर्त व्यतिरेक से रहित ऐसा व्यतिरेक दृष्टान्ताभास कहा जाता है। व्यतिरेक दृष्टान्ताभास का और भी उदाहरण देते हैं। विपरीतव्यतिरेकश्च यन्नामूर्तं तन्नापौरुषेयम् ॥45॥ सूत्रार्थ- विपरीत-उल्टा व्यतिरेक बतलाते हुए व्यतिरेक दृष्टान्त देना भी व्यतिरेक दृष्टान्ताभास है। जैसे- जो अमूर्त नहीं है वह अपौरुषेय नहीं होता। 55. विपरीत है व्यतिरेक अर्थात् व्यावृत्ति का दिखाना जिसमें उसे कहते हैं विपरीत व्यतिरेक, इस प्रकार विपरीत व्यतिरेक शब्द का विग्रह समझना। वह विपरीत इस प्रकार होता है कि "जो अमृत नहीं है वह अपौरुषेय नहीं होता" यहाँ व्यतिरेक तो ऐसा करना चाहिये था कि साध्य के हटने पर साधन का हटाना दिखाया जाय अर्थात् जो अपौरुषेय नहीं है वह अमूर्त नहीं होता, इसी प्रकार कहने से ही व्यतिरेक व्याप्ति सही होती है, क्योंकि साध्य-साधन का इसी तरह का अविनाभाव होता इस प्रकरण को सारांश में इस प्रकार समझेंगे कि- शब्द अपौरुषेय है, क्योंकि वह अमूर्त है। इस प्रकार किसी मीमांसकादि ने अनुमान वाक्य कहा, फिर व्यतिरेक व्याप्ति दिखाते हुए दृष्टान्त दिया कि "जो जो अमूर्त नहीं है वह वह अपौरुषेय नहीं होता, जैसे परमाणु तथा इन्द्रिय सुख और आकाश अमूर्त नहीं होने से अपौरुषेय नहीं है" अतः इस तरह किसी व्यामोह वश उलटा व्यतिरेक और उलटा ही दृष्टान्त दें तो वह व्यतिरेक दृष्टांताभास कहलाता है। यदि सिर्फ दृष्टान्त ही साध्य साधन के व्यतिरेक से रहित है तो वह व्यतिरेक दृष्टांताभास है और यदि मात्र व्यतिरेक व्याप्ति उलटी दिखायी तो भी वह दृष्टान्ताभास कहलाता अनुमान में साध्य और साधन ये दो प्रमुख पदार्थ होते हैं, साध्य
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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