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________________ 6/29 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः 251 30. साध्यस्वरूपाद्विपरीतेन प्रत्यनीकेन निश्चितोऽविनाभावो यस्यासौ विरुद्धः। यथाऽपरिणामी शब्द: कृतकत्वादिति। कृतकत्वं हि पूर्वोत्तराकारपरिहारावाप्तिस्थितिलक्षणपरिणामेनैवाविनाभूतं बहिरन्तर्वा प्रतीतिविषयः सर्वथा नित्ये क्षणिके वा तदभावप्रतिपादनात्। 31. ये चाष्टौ विरुद्धभेदाः परैरिष्टास्तेप्येतल्लक्षणलक्षितत्वाविशेषतोऽत्रैवान्तर्भवन्तीत्युदाह्नियन्ते। सति सपक्षे चत्वारो विरुद्धाः। पक्षविपक्षव्यापक: सपक्षावृत्तिर्यथा-नित्यः शब्द उत्पत्तिधर्मकत्वात्। उत्पत्तिधर्मकत्वं हि पक्षीकृते 30. साध्य से विपरीत जो विपक्ष है उसके साथ है अविनाभाव जिसका उसे विरुद्ध हेत्वाभास कहते हैं, इस प्रकार “विपरीत निश्चिताविनाभावः" इस पद का विग्रह है। जैसे किसी ने कहा कि शब्द कृतक होने से अपरिणामी है, सो वह विरुद्ध है, क्योंकि कृतकत्व तो उसे कहते हैं जो पूर्व आकार का परिहार और उत्तर आकार की प्राप्ति एवं स्थितिरूप से परिणमन करता है, इस तरह के परिणमित्व के साथ ही कृतकत्व का अविनाभाव है, बहिरंग घट आदि पदार्थ, अंतरंग आत्मादि पदार्थ में सभी कथंचित् इसी प्रकार से परिणामी होते हुए प्रतिभासित होते हैं, सर्वथा नित्य या सर्वथा क्षणिक में परिणमित्व सिद्ध नहीं होता, ऐसा हमने पहले ही प्रतिपादन कर दिया है। 31. इस विरुद्ध हेत्वाभास के नैयायिकादि परवादी आठ भेद मानते हैं, उनकी कोई पृथक्-पृथक् लक्षण भेद से सिद्धि नहीं होती है आठों का अन्तर्भाव एक में ही करके उनके उदाहरण बताते हैं जिसका सपक्ष मौजूद रहता है ऐसे विरुद्ध हेत्वाभास के चार भेद होते हैं, तथा जिसमें सपक्ष नहीं होता ऐसे विरुद्ध हेत्वाभास के चार भेद होते हैं, उनमें से प्रथम ही सपक्ष वाले विरुद्ध हेत्वाभासों के क्रमशः दृष्टान्त देते हैंजो हेतु पक्ष और विपक्ष में व्यापक हो और सपक्ष में न हो वह प्रथम विरुद्ध हेत्वाभास है, जैसे किसी ने अनुमान कहा कि शब्द [पक्ष] नित्य है [साध्य] क्योंकि यह उत्पत्ति धर्म वाला है। [हेतु] यहाँ उत्पत्ति धर्मकत्व हेतु पक्षभूत शब्द में रहता है, किन्तु आकाशादि सपक्ष के होते हुए भी उसमें नहीं रहता।
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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