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________________ 6/28 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः 247 चाविद्यमाननिश्चयः। कुत एतत्? तेनाज्ञातत्वात् ॥28॥ 26. न ह्यस्याविर्भावादन्यत् कारणव्यापारादसतो रूपस्यात्मलाभलक्षणं कृतकत्वं प्रसिद्धम्। 27. सन्दिग्धविशेष्यादयोप्यविद्यमाननिश्चयतालक्षणातिक्रमाभावान्नार्थान्तरम्। तत्र सन्दिग्धविशेष्यासिद्धो यथा-अद्यापि रागादियुक्तः कपिल: सूत्रार्थ- सांख्य मतानुसारी शिष्य को कहना कि शब्द परिणामी है, क्योंकि कृतक किया हुआ है, अतः इस अनुमान के साध्य साधन भाव का निश्चय उस शिष्य को नहीं होने से उसके प्रति कृतकत्व हेतु संदिग्धासिद्ध है कैसे वह बताते हैं तेनाज्ञातत्त्वात् ॥28॥ सूत्रार्थ- सांख्यमतानुसारी शिष्य कृतकत्व हेतु और परिणामी साध्य इनके साध्य साधनभाव को नहीं जानता है। 26. सांख्य के यहाँ आविर्भाव तिरोभाव को छोड़कर अन्य कोई उत्पत्ति और विनाश नहीं माना जाता, आविर्भाव से पृथक किसी कारण के व्यापार से कोई असत् स्वरूप पदार्थ का आत्मलाभ होना उत्पन्न हो जाना ऐसा कृतकपना सांख्य के यहाँ पर प्रसिद्ध नहीं है। उनके यहाँ तो आविर्भाव-प्रकट होना ही उत्पन्न होना है और तिरोभाव होना ही नाश है, अमुक कारण से अमुक कार्य पैदा हुआ, मिट्टी ने घड़े को किया, कुम्हार ने घड़े को किया ऐसा उनके यहाँ नहीं माना है अतः ऐसे व्यक्ति को कोई कहे कि शब्द कृतक होने से परिणामी है, शब्द को उत्पन्न किया जाता है अतः वह परिणामी है इत्यादि। 27. यह कथन उस सांख्यमती शिष्य के प्रति संदिग्ध ही रहेगा। इस संदिग्धासिद्ध हेत्वाभास के परवादी संदिग्धविशेष्य आदि अनेक भेद करते हैं किन्तु उन सबमें अविद्यमान निश्चयरूप लक्षण का
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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