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________________ 246 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः 6/26-27 कुतोस्याविद्यमाननियततेत्याह- । तस्य बाष्पादिभावेन भूतसंघाते सन्देहात् ॥26॥ 25. मुग्धबुद्धेर्बाष्पादिभावेन भूतसंघाते सन्देहात्। न खलु साध्यसाधनयोरव्युत्पन्नप्रज्ञः 'धूमादिरीदृशो वाष्पादिश्चेदृशः' इति विवेचयितुं समर्थः। साङ्ख्यं प्रति परिणामी शब्दः कृतकत्वादिति ॥27॥ ने साध्य साध्यभाव का नियम नहीं जाना है उसके प्रति हेतुका प्रयोग करना सन्दिग्धासिद्ध है, जैसे मुग्धबुद्धि [अनुमान के साध्य-साधन को नहीं जानता हो अथवा अल्प बुद्धि वाला] के प्रति कहना कि-यहाँ पर अग्नि है क्योंकि धूम दिखाई दे रहा है। आगे बता रहे हैं कि इस हेतु का निश्चय क्यों अविद्यमान हैतस्य वाष्पादिभावेन भूतसंघाते संदेहात् ॥26॥ सूत्रार्थ- उस मुग्धबुद्धि पुरुष को अग्नि पर से उतारी हुई चावलादि की बटलोई को देखकर उसमें होने वाले वाष्प बाफ के देखने से अग्नि का संदेह होना अतः अनिश्चित अविनाभाव वाले हेतु का अथवा अल्पज्ञ के प्रति हेतु का प्रयोग करना सन्दिग्धासिद्ध हेत्वाभास है। तात्पर्य यह है कि चूल्हा पर पानी और चावल डालकर बटलोई को चढ़ाया, वहाँ बटलोई मिट्टी की है अतः पृथिवी, अग्नि, पानी ये तीनों है तथा हवा सर्वत्र है इस तरह भूत चतुष्टय का संघात स्वरूप उस बटलोई में पकते हुये चावल से बाफ निकलती है, बाफ और धूम कुछ सदृश होते हैं। 25. अब कोई अल्पज्ञ पुरुष है उसको किसी ने कहा कि यहाँ सामने अवश्य अग्नि है, क्योंकि धूम दिख रहा है उस वाक्य को सुनकर उक्त पुरुष संदेह में पड़ जायगा क्योंकि वह साध्य साधन के भाव में प्रथम तो अव्युत्पन्न है तथा धूमादि तो इस तरह का होता है और वाष्प इस तरह का होता है ऐसा विवेचन करना उसके लिये अशक्य है। सांख्यं प्रति परिणामी शब्दः कृतकत्वात् ॥27॥
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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