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________________ 240 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः 6/24 16. विशेषणासिद्धो यथा-अनित्यः शब्दश्चाक्षुषत्वे सति सामान्यवत्त्वात्। 17. आश्रयासिद्धो यथा-अस्ति प्रधानं विश्वपरिणामित्वात्। 18. आश्रयैकदेशासिद्धो यथा-नित्याः परमाणुप्रधानात्मेश्वरा अकृतकत्वात्। ___19. व्यर्थविशेष्यासिद्धो यथा-अनित्याः परमाणवः कृतकत्वे सति सामान्यवत्त्वात्। विशेषणासिद्ध हेत्वाभास 16. शब्द अनित्य है, क्योंकि वह चाक्षुष होकर सामान्यवान् है, यहाँ चाक्षुष को विशेषण और सामान्यवान को विशेष्य बताया, शब्द चाक्षुष होता नहीं अतः यह विशेषण असिद्ध नामा हेत्वाभास बना। आश्रयासिद्ध हेत्वाभास ___ 17. सांख्याभिमत प्रधान तत्त्व है, क्योंकि वही विश्वरूप परिणमन कर गया है इस अनुमान का विश्व-परिणामित्व हेतु आश्रय से विहीन है, क्योंकि वास्तविकरूप से प्रधान तत्त्व की सिद्धि नहीं होती है। आश्रयेकदेशासिद्ध हेत्वाभास 18. जिस हेतु का आश्रय एक देश असिद्ध हो उसका उदाहरण- परमाणु, प्रधान, आत्मा और ईश्वर ये चारों नित्य है, क्योंकि अकृत्रिम है। यहाँ जो अकृतकत्वात् हेतु है वह अपने पक्षभूत परमाणु आदि चारों में न रहकर परमाणु और आत्मा इन दो में ही रहता है क्योंकि प्रधान और ईश्वर नाम के कोई पदार्थ है नहीं, अतः यह हेतु आश्रय एक देश असिद्ध हेत्वाभास कहलाया [तथा परमाणु सर्वथा नित्य नहीं होने से अकृतकत्व हेतु अनुमान बाधित पक्ष वाला भी है]। व्यर्थविशेष्यासिद्धो हेत्वाभास 19. जिसका विशेष्य व्यर्थ हो वह व्यर्थ विशेष्यासिद्ध हेत्वाभास है जैसे परमाणु अनित्य है, क्योंकि कृतक होकर सामान्यवान है, यह
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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