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________________ 6/14-15 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः 233 स हि प्रतिवाद्यादिदर्शनात्कदाचिदाकुलितबुद्धिर्विस्मरन्ननभिप्रेतमपि पक्षं करोति। तथा सिद्धः श्रावणः शब्दः 14॥ सिद्धः पक्षाभासः, यथा श्रावणः शब्द इति, वादिप्रतिवादिनोस्तत्राऽविप्रतिपत्तेः। तथा बाधितः प्रत्यक्षानुमानागमलोकस्ववचनैः ॥15॥ अनिष्टो मीमांसकस्याऽनित्यः शब्द इति ॥13॥ सूत्रार्थ- मीमांसक शब्द को नित्य मानने का पक्ष रखते हैं किंतु यदि कदाचित् वे पक्ष बनायें कि अनित्यः शब्दः कृतकत्वात् शब्द अनित्य है, क्योंकि वह किया हुआ है। इस तरह शब्द को अनित्य बताना उन्हीं के लिये अनिष्ट हुआ, प्रतिवादी के मत को देखना आदि के निमित्त से कदाचित् आकुलित बुद्धि होकर वादी अपने पक्ष को विस्मृत कर अनिष्ट ऐसे परमत के पक्ष को करने लग जाता है। तथा सिद्धः श्रावणः शब्दः ॥14॥ सूत्रार्थ- पक्ष में रहने वाला साध्य असिद्ध विशेषण वाला होना चाहिये उसे न समझकर कोई सिद्ध को ही पक्ष बनाये तो वह सिद्ध पक्षाभास कहलाता है, जैसे किसी ने पक्ष उपस्थित किया कि "श्रावणः शब्द:" शब्द श्रवणेन्द्रिय द्वारा ग्राह्य होता है, तब ऐसे समय पर वह पक्षाभास होगा क्योंकि शब्द श्रवणेन्द्रिय ग्राह्य होता है। ऐसा सभी को सिद्ध है। वादी प्रतिवादी का इसमें कोई विवाद नहीं है। बाधितः प्रत्यक्षानुमानागमलोकस्ववचनैः ॥15॥ सूत्रार्थ- बाधित पक्ष पाँच प्रकार का है प्रत्यक्ष बाधित, अनुमान बाधित, आगमबाधित, लोकबाधित और स्ववचन बाधित। जो भी पक्ष रखे वह अबाधित होना चाहिये- ऐसा पहले कहा था किन्तु उसे स्मरण नहीं करके कोई बाधित को पक्ष बनावे तो वह बाधित पक्षाभास है।
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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