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________________ 6/10 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः 231 असम्बन्धे तज्ज्ञानं तर्काभासम्, यावाँस्तत्पुत्रः स श्यामः इति यथा mon 6. व्याप्तिज्ञानं तर्क इत्युक्तम्। ततोन्यत्पुनः असम्बन्धे-अव्याप्ती तज्ज्ञानं व्याप्तिज्ञानं तर्काभासम्। यावाँस्तत्पुत्रः स श्याम इति यथा। या समझता है कि यह सुरेश रमेश सदृश है इस तरह प्रत्यभिज्ञानाभास के उदाहरण समझने चाहिये। तर्काभास असंबंधे तज्ज्ञानं तर्काभासम्, यावांस्तत् पुत्रः स श्यामः इति यथा ॥10॥ सूत्रार्थ- जिसमें व्याप्ति संबंध नहीं है ऐसे असंबद्ध पदार्थ में संबंध का ज्ञान होना तर्काभास है, जैसे मैत्री का जो भी पुत्र है वह श्याम [काला] ही है इत्यादि। 6. व्याप्ति ज्ञान को तर्क कहते हैं ऐसा पहले बता दिया है, उस लक्षण से अन्य जो ज्ञान हो वह तर्काभास है, व्याप्ति ज्ञान का लक्षण बतलाते हुए कहा था कि "उपलंभानुपलभनिमित्तं व्याप्तिज्ञान मूहः" उपलम्भ और अनुपलम्भ के निमित्त से व्याप्ति का ज्ञान होना तर्क प्रमाण है, जैसे जहाँ जहाँ धूम होता है वहाँ वहाँ अग्नि होती है, और जहाँ अग्नि नहीं होती वहाँ धूम भी नहीं होता इत्यादि। इस प्रकार साध्य और साधन के अविनाभावपने का ज्ञान होना अर्थात् इस साध्य के बिना यह हेतु नहीं होता- इस हेतु का साध्य के साथ अविनाभावी संबंध है इसी तरह संबंधयुक्त पदार्थ का ज्ञान तो तर्क है किन्तु जिसमें ऐसा अविनाभावी सम्बन्ध नहीं है, उनमें संबंध बताना तो तर्काभास ही है, जैसे किसी अज्ञानी ने अनुमान बताया कि यह मैत्री के गर्भ में स्थित जो बालक है वह काला होगा, क्योंकि वह मैत्री का पुत्र है, जो जो मैत्री का पुत्र होता है, वह काला ही होता है, जैसे वर्तमान में उसके और भी जो पुत्र है वे सब काले हैं। इस अनुमान में मैत्री के पुत्र के साथ काले रंग का अविनाभाव सम्बन्ध जोड़ा है वह गलत है, यह जरूरी नहीं है कि किसी के वर्तमान
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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