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5/3 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
223 स श्रीमानखिलप्रमाणविषयो जीयाज्जनानन्दनः,
मिथ्यैकान्तमहान्धकाररहितः श्रीवर्द्धमानोदितः॥ इति श्रीप्रभाचन्द्रविरचिते प्रमेयकमलमार्तण्डे परीक्षामुखालङ्कारे पञ्चम
परिच्छेदः।।श्रीः।।
स श्रीमानखिलप्रमाणविषयो जीयाज्जनानन्दनः। मिथ्यैकान्तमहान्धकाररहितः श्रीवर्द्धमानोदितः।।
जो अनेकान्त पद को प्राप्त है ऐसा अखिल प्रमाण का विषय जयशील हो, कैसा है वह अनेकान्त पद! प्रबुद्धशाली एवं अतुल है तथा स्व अपने इष्ट अर्थ की सिद्धि को देने वाला है, अनन्त गुणों का जिसमें उदय है, पूर्णरूप से निर्मल है, जीवों को आनन्दित करने वाला है, मिथ्या एकान्तरूप महान् अंधकार से रहित है, श्री वर्द्धमान तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित है श्रीयुक्त ऐसा यह प्रमाण विषय जयवन्त वर्तो।
निखिलवित्-सर्वज्ञदेव जयशील हो! कैसे हैं सर्वज्ञदेव? जो अनेकान्त पद को प्राप्त हैं, कैसा है अनेकान्त पद? प्रवृद्ध, अतुल, स्वेष्टार्थसिद्धि का प्रदाता, अनन्त गुणों का जिसमें उदय पाया जाता है, पूर्णरूप से निर्मल है, श्रीमान्- श्रीयुक्त है, श्री अर्थात् अंतरंग लक्ष्मी अनंत ज्ञानादि, बहिरंग लक्ष्मी समवशरणादि से युक्त है, जगत् के जीवों को आनन्दित करने वाले हैं, संपूर्ण प्रमाणों के विषयों को जानने वाले होने से अखिल प्रमाण विषय है, मिथ्या एकान्तरूपी महान् अंधकार से रहित है, एवं गुण विशिष्ट सर्वज्ञदेव सदा जयवन्त रहे। इति।
इति श्रीप्रभाचन्द्राचार्यविरचिते प्रमेयकमलमार्तण्डे परीक्षामुखालंकारे पञ्चम परिच्छेदः समाप्तः।