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________________ (xxiii ) मूलग्रन्थकार आचार्य माणिक्यनन्दि और उनका _ 'परीक्षामुखसूत्र' ग्रन्थ जिस प्रकार आचार्य उमास्वामी को संस्कृत की जैन परम्परा का प्रथम सूत्रकार माना जाता है, जिन्होंने सम्पूर्ण जिनागम का मंथन करके उसके सार को संस्कृत भाषा में सूत्र रूप में निबद्ध करके तथा दश अध्यायों में तत्त्वार्थसूत्र नामक ग्रन्थ का प्रणयन करके जैनधर्म-दर्शन को नयी दिशा दी, उसी प्रकार जैन न्याय परम्परा में आचार्य माणिक्यनन्दि ने उनके समय तक विकसित सम्पूर्ण जैन न्याय को सूत्रों में निबद्ध करके छह समुद्देश्यों में 'परीक्षामुख' नामक महान् ग्रन्थ का प्रणयन करके जैनदर्शनान्तर्गत जैन न्याय को एक नयी दिशा में आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त किया है। वे जैन न्याय के आद्य सूत्रकार सिद्ध होते हैं। आचार्य माणिक्यनन्दि नन्दिसंघ के प्रमुख आचार्य थे। आप प्रमुख रूप से धारा नगरी में विराजते थे। आपने आचार्य अकलंकदेव के ग्रन्थों का मंथन करके परीक्षामुख ग्रन्थ का प्रणयन किया था- ऐसा आचार्य अनन्तवीर्य लिखते हैं अकलंकवचोम्भोधेरुद्दधे येन धीमता। न्यायविद्यामृतं तस्मै नमो माणिक्यनन्दिने। अर्थात् जिस बुद्धिमान ने अकलङ्कदेव के वचनरूप समुद्र से न्यायविद्या रूप अमृत का उद्धार किया, उन माणिक्यनन्दि आचार्य को हमारा नमस्कार हो। आचार्य अकलङ्कदेव ने जैन न्यायशास्त्र की रूपरेखा बाँधकर तदनुसार दार्शनिक तत्त्वों का विवेचन किया है। इनके द्वारा प्रणीत महान् दार्शनिक ग्रन्थ लघीयस्त्रय, न्यायविनिश्चय, सिद्धिविनिश्चय, प्रमाणसंग्रह आदि न्याय प्रकरणों के आधार से माणिक्यनन्दि ने परीक्षामुखसूत्र की
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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