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________________ 3/101 142. सहजा स्वाभाविकी योग्यता शब्दार्थयोः प्रतिपाद्यप्रतिपादकशक्तिः ज्ञानज्ञेययोआप्यज्ञापकशक्तिवत्। न हि तत्राप्यतो योग्यतातोऽन्यः कार्यकारण- भावादिः सम्बन्धोस्तीत्युक्तम्। तस्यां सत्यां सङ्केतः। तद्वशाद्धि स्फुटं शब्दादयो वस्तुप्रतिपत्तिहेतवः। यथा मेर्वादयः सन्ति 101॥ इति। योग्यता के कारण तथा संकेत होने के कारण (यह घट है इस पदार्थ को घट शब्द से पुकारते हैं इत्यादि संकेत के कारण) वे शब्दादिक अर्थ का ज्ञान कराने में हेतु हो जाते हैं। 142. शब्द और पदार्थ में सहज स्वाभाविक योग्यता होती है। उसी के कारण शब्द प्रतिपादक और पदार्थ प्रतिपाद्य की शक्ति वाला हो जाया करता है, जिस प्रकार ज्ञान और ज्ञेय में ज्ञाप्य ज्ञापक शक्ति हुआ करती है। ज्ञान और ज्ञेय में भी सहज योग्यता को छोड़कर अन्य कोई कार्य कारण आदि सम्बन्ध नहीं होता, इस विषय को पहले निर्विकल्प प्रत्यक्षवाद और साकार ज्ञानवाद प्रकरण में भलीभाँति सिद्ध कर दिया है। इसे यदि हम विशेष रूप से समझें तो वह यह है कि शब्द और पदार्थ में वाच्य-वाचक सम्बन्ध है न कि कार्यकारण आदि सम्बन्ध। ज्ञान और ज्ञेय अथवा प्रमाण और प्रमेय में भी कार्यकारण आदि सम्बन्ध नहीं पाये जाते अपितु ज्ञाप्य ज्ञापक सम्बन्ध ही पाया जाता है। बौद्ध ज्ञान और ज्ञेय में कार्य कारण सम्बन्ध मानते हैं उनका कहना है कि ज्ञान ज्ञेय से उत्पन्न होता है अतः ज्ञान कार्य है और उसका कारण ज्ञेय (पदार्थ) है किन्तु यह मान्यता सर्वथा प्रतीति विरुद्ध है। ज्ञानानुभव आत्मा में होता है अथवा इस प्रकार कहें कि अग्नि और उष्णतावत् आत्मा ज्ञान स्वरूप ही है ऐसा आत्मा से अपृथक्भूत ज्ञान पदार्थ से उत्पन्न होना सर्वथा असम्भव है। ज्ञान आत्मा से ही उत्पन्न होता है ज्ञेय से नहीं, फिर भी प्रतिनियत ज्ञेय को जानना आवश्यक है, अर्थात् अमुक ज्ञान अमुक पदार्थ 182:: प्रमेयकमलमार्तण्डसार:
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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