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3/90 131. अनेकान्तेन हि विरुद्धो नित्यैकान्तः क्षणिकैकान्तो वा। तस्य चानुपलब्धिः प्रत्यक्षादिप्रमाणेनाऽस्य ग्रहणाभावात्सुप्रसिद्धा। यथा च प्रत्यक्षादेस्तद्ग्राहकत्वाभावस्तथा विषयविचारप्रस्तावे विचारयिष्यते।
132. ननु चैतत्साक्षाद्विधौ निषेधे वा परिसङ्ख्यातं साधनमस्तु। यत्तु परम्परया विधेर्निषेधस्य वा साधकं तदुक्तसाधनप्रकारेभ्योऽन्यत्वादुक्तसाधनसङ्ख्याव्याघातकारि छलसाधनान्तरमनुषज्येत। इत्याशङ्कय परम्परयेत्यादिना प्रतिविधत्ते
परम्परया सम्भवत्साधनमत्रैवान्तर्भावनीयम् ॥१०॥
यतः परम्परया सम्भवत्कार्यकार्यादि साधनमत्रैव अन्तर्भावनीयं ततो नोक्तसाधनसङ्ख्याव्याघातः।
अनेकान्तात्मकं वस्त्वेकान्तानुपलब्धेः ॥89॥
सूत्रार्थ- वस्तु अनेकान्तात्मक होती है क्योंकि एकान्त की अनुपलब्धि है।
____131. अनेकान्त के विरुद्ध नित्य एकांत या क्षणिक एकान्त होता है। उसकी अनुपलब्धि प्रत्यक्षादि प्रमाण द्वारा सिद्ध होती है क्योंकि एकान्त को ग्रहण करने वाले प्रमाण का अभाव है। प्रमाण के विषय का विचार करते समय आगे निश्चय करेंगे कि प्रत्यक्षादि प्रमाण नित्यैकांत आदि एकान्त को ग्रहण नहीं करते।
__132. शंका- जो साध्य साक्षात् विधिरूप या निषेधरूप है उसमें उक्त प्रकार के हेतु की संख्या मानना ठीक है किन्तु जो परंपरागत से विधि या निषेध का साधक है ऐसा हेतु उक्त हेतु के प्रकारों से अन्यरूप है, अतः ऐसे हेतु से उक्त हेतु संख्या का व्याघातकारी छल साधनान्तर का प्रसंग आता है?
समाधान- इस शंका का समाधान आगे के सूत्र द्वारा करते हैंपरम्परया सम्भवत् साधनमत्रैवान्तर्भावनीयम् ॥१०॥
सूत्रार्थ- परम्परारूप होने वाला साधन (हेतु) इन्हीं पूर्वोक्त हेतु प्रकारों में अन्तर्भूत करना चाहिए। अतः उक्त हेतुओं की संख्या का 170:: प्रमेयकमलमार्तण्डसार: