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________________ 3/79 125. यश्च यद्देशाधेयतया कल्पितो घटः स एव तेनैकज्ञानसंसर्गी, न देशान्तरस्थः। ततश्चैकज्ञानसंसर्गिपदार्थान्तरोपलम्भे योग्यतया सम्भावितस्य घटस्योपलब्धिलक्षणप्राप्तानुपलम्भः सिद्धः । 126. ननु चैकज्ञानसंसर्गिण्युपलम्यमाने सत्यपीतरविषयज्ञानोत्पादनशक्ति: सामग्रया: समस्तीत्यवसातुं न शक्यते प्रभाववतो योगिनः पिशाचादेर्वा प्रतिबन्धात्सतोपि घटस्यैकज्ञानसंसर्गिणि प्रदेशादावुपलभ्यमानेष्यनुपलम्भसम्भवात्; तदयुक्तम्; यतः प्रदेशादिनैकज्ञानसंसर्गिण एव घटस्याभावो नान्यस्य । यस्तु पिशाचादिनाऽन्यत्वमापादितः स नैव निषेध्यते । इह चैकज्ञानसंसर्गिभासमानोर्थस्तज्ज्ञानं च पर्युदासवृत्या घटस्याऽसत्तानुपलब्धिश्चोच्यते। 125. तथा जो घट जिस प्रदेश के आधेयपने से कल्पित है वही उससे एक पुरुष के ज्ञान का संसर्गी है, अन्य प्रदेशस्थ घट एक पुरुष के ज्ञान का संसर्गी नहीं है। इसलिये एक पुरुष के ज्ञान का संसर्गी पदार्थांतर अर्थात् भूतल का उपलम्भ ( प्रत्यक्ष ) होने पर दृश्यपने से संभावित घट का उपलब्धि लक्षण प्राप्त अनुपलम्भ सिद्ध होता है। 126. शंका- एक ज्ञान संसर्गी पदार्थांतर के उपलभ्यमान होने पर भी दूसरा विषय जो घट है उसके ज्ञानोत्पादन की शक्ति है ऐसा उक्त सामग्री से निश्चय करना शक्य नहीं, क्योंकि किसी प्रभावशाली योगी द्वारा अथवा पिशाचादि द्वारा प्रतिबंध हो तो घट के विद्यमान रहते हुए भी उसका एक ज्ञान संसर्गीभूत प्रदेशादि के उपलभ्यमान होते भी अनुपलम्भ सम्भव है? अर्थात् घट के रहते हुए भी किसी योगी आदि ने उसको अदृश्य कर दिया हो तो उसका अस्तित्व रहते हुए भी अनुपलम्भ होता है, दिखायी नहीं देता अतः उपलब्ध होने योग्य होकर उपलब्ध न हो तो उसका नियम से अभाव ही है ऐसा कहना गलत ठहरता है? समाधान- यह शंका अयुक्त है प्रदेशादि से जो घट एक ज्ञान का संसर्गी (विषय) था उसी घट का अभाव निश्चित किया जाता है न कि अन्य घट का जो घट पिशाचादि द्वारा अन्यरूप अर्थात् अदृश्यरूप 164 :: प्रमेयकमलमार्त्तण्डसारः
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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